“The believer showed the mirror to secular ji because.”
सनातन धर्म के कई ग्रंथों में बताया गया है की किस के साथ कैसा व्यवहार करना है, परंतु कुछ लोग सेकुलरपने की बीमारी से बुरी तरह ग्रस्त हैं।
सनातन 🚩समाचार🌎 सबका भला करने की भावना और सब में खुशियां बांटने की भावना सनातन धर्म का मूलभूत सिद्धांत है, जिसका हिंदू लोग पालन भी करते हैं। परंतु इस सब के साथ ही साधन धर्म में के बहुत सारे ग्रंथों में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि किसके ऊपर दिया करनी चाहिए किसके ऊपर नहीं। किसको दान देना चाहिए और किसको नहीं, तथा यह भी स्पष्ट बताया गया है किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। परंतु जब इन बातों पर ध्यान देने के बजाय केवल सेकुलरपने के रोग से वशीभूत होकर जब हिंदू सेवा कार्य करते हैं तब कभी ना कभी उन्हें कोई वास्तविकता बता ही देता है।
हिंदुओं के खिलाफ
बताने की आवश्यकता नहीं है कि आज हिंदुओं के लिए हिंदुस्तान में बहुत ही विपरीत परिस्थितियां हैं। तथा बहुत सारे संगठित लोगों का हिंदुओं के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं। जिसका प्रभाव अब सारे देश में स्पष्ट रूप से दिख रहा है। ऐसे ही एक समाजसेवी की चर्चा हमें कर लेनी चाहिए।
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विशेष : हम जिस व्यक्ति की बात कर रहे हैं धर्मानुसार वह अपनी जगह सही है वह कुछ भी गलत नहीं कर रहा है। इसलिए वह प्रणाम का ही अधिकारी है, परंतु धर्म शास्त्रों पर ध्यान ना देने से वह अपमानित ही हुआ है।
दिल्ली के एक सेकुलर समाजसेवी हिंदू के पैरों के नीचे से कुछ समय जमीन निकल गई जब वह एक भाईजान की फैक्ट्री में मिठाई के खाली डिब्बे खरीदने गया।अपनी आपबीती बताते हुए सनातनी समाजसेवी ने बताया है कि वह अक्सर कोई ना कोई समाज सेवा का कार्य करता रहता है। उसके अनुसार उसने दीपावली के पवित्र अवसर पर यह संकल्प लिया था कि मैं 500 परिवारों में मिठाई के डिब्बे और कपड़े पहुंचाऊंगा। जब मैं यह सेवा कार्य कर रहा था तो मेरे पास मिठाई के लगभग 100 डिब्बे घट गए गए, जिसके लिए मैं मिठाई के खाली डिब्बे खरीदने के लिए नजफगढ़ मैं पढ़ती एक फैक्ट्री में गया, जो कि एक मुसलमान व्यक्ति की है।
हम दिवाली नहीं मनाते
मैंने उससे जाकर कहा की मुझे आप 100 खाली डिब्बे दे दीजिए। हालांकि उसका काम ही खाली डिब्बे बनाने का है परंतु दिवाली का नाम सुनते ही उसने मुझे डिब्बे देने से मना कर दिया। परंतु जब उससे कई बार कहा तो वह देने को मान भी गया। उसने डिब्बों के ₹600 का बिल बनाया। जिस पर मैंने उसे 550 रुपए दे कर कहा कि आप साडे 550 रुपए रखे, ₹50 आपकी तरफ से दिवाली की सेवा में सहयोग हो जाएगा। तो उसने बुरा मुंह बनाते हुए कहा कि हम दिवाली नहीं मनाते हैं। समाजसेवी बंधु को उस समय बड़ा झटका लगा जब उस डिब्बे बनाने वाले मुस्लिम ने ये कह दिया की अगर औकात नहीं है तो क्यों बांटने चल देते हो ?
दिवाली के बारे में गलत बोला
समाज सेवी भाई के अनुसार उसकी वो बात बहुत पीड़ा देने वाली थी। हमारे सर्कुलर समाजसेवी जी ने आगे बताया कि इसके बाद एक और उसका साथी जो मुसलमान था, वह भी वहां पर आ गया और जब हमारी थोड़ी सी ज्यादा बात हुई तो उसने सीधा हमारी दिवाली के बारे में उल्टा सीधा बोलना शुरु कर दिया। जो कि हमारी धार्मिक भावना आहत करने वाला था। समाजसेवी के अनुसार उनकी ऐसी बातों से उसके मन को बहुत पीड़ा पहुंची है। परंतु हम सेवा करने वाले लोग हैं हम उन से लड़ना ही नहीं चाहते थे, इसलिए वहां से वापस आ गए।
सेकुलर पुलिस में शिकायत नहीं करते
इसके बाद समाजसेवी ने कहा है कि अब मैं पुलिस के पास जाऊंगा क्योंकि ऐसे व्यक्ति को सजा मिलनी चाहिए। हालांकि इस प्रकार के लोग धर्म के हुए धर्म पर हुए आघात की शिकायत कभी नहीं करते, और ना इस बंधु ने की है।यहां बड़ी बात यह है की सेकुलर बनने का शायद यही अर्थ है की सब को प्रणाम करते रहो भले ही कोई हमारे धर्म को बुरा भला कहते रहे, हमारी आस्थाओं का मजाक उड़ाता रहे।
और सबसे बढ़ि बात यह है की सेकुलर नाम की ये बीमारी हिंदुस्तान में केवल हिंदुओं की को ही है। हिंदुओं के ईलावा हिंदुस्तान में कोई और मजहब या रिलीजन वाला व्यक्ति सेकुलर है ही नहीं।