👆बटन टच करके खबर शेयर करें👆
“Have you ever seen this movie “Lanka Dahan”? It’s a sure thing that you haven’t. Why were people crazy about it and when was this movie made? You will be surprised to know.”
जय श्री राम, श्री राम जय राम जय जय राम, जय हनुमान।
सनातन🚩समाचार🌎आज कल तो एक से बढ़कर एक महंगी और आधुनिक तकनीक से युक्त फिल्मे बनाई जा रही हैं भले ही ये फिल्म सनातन संस्कृति को आघात पहुंचाने वाली हों। किंतु कभी ऐसी भी फिल्मे बनती थीं जिन्हें लोग अपने जूते उतार कर देखा करते थे
लंका दहन।
वर्ष 1917 में ये फिल्म रिलीज़ हुई थी। एक साइलेंट फिल्म। ये भारत की पहली बॉक्स ऑफिस हिट फिल्म थी। इस फिल्म को उस समय के ख्याति प्राप्त दादासाहेब फाल्के ने बनाया था। इस फिल्म को लेकर लोगों में गज़ब का उस्ताह था और श्रद्धा थी। दी गई तस्वीर में आप हनुमान जी को देख सकते हैं। हनुमान जी बने इस कलाकार का नाम है डी.डी. डाबके। इनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी कि ये कौन थे ? और किन फिल्मों में इन्होंने काम किया था ?
लेकिन इस फिल्म से जुड़ी एक बड़ी अनोखी बात ये पता चली है की इस फिल्म में राम जी और माता सीता जी का रोल एक ही अभिनेता ने निभाया था। वो थे अन्ना सालुंके। क्योंकि उस ज़माने में कोई महिला चलचित्रों में काम करने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। यही कारण था कि भारत में बनी शुरुआती लगभग सभी फिल्मों में पुरुष कलाकारों ने ही स्क्रीन पर महिलाओं के किरदार भी निभाए थे। अन्ना सालुंके ने भारत की पहली फिल्म राजा हरीशचंद्र में भी काम किया था। और राजा हरीशचंद्र में अन्ना सालुंके ने तारामति का रोल भी किया था।
अब बात करते हैं लंका दहन फिल्म की। इस फिल्म को मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा में प्रीमियर किया गया था। फिल्म देखने के लिए लोगों की लंबी-लंबी कतारें लग जाया करती थी। जब भी स्क्रीन पर भगवान राम दिखाई देते थे, लोग अपने जूते-चप्पल उतार दिया करते थे। फिल्म में उस समय के हिसाब जो ट्रिक फोटोग्राफी और स्पेशल इफैक्ट्स डाले गए थे उनसे लोग बहुत ज्यादा प्रभावित हुए थे।
फिल्म हिस्टोरियन अमिता गांगर के अनुसार सुबह सात बजे से ही लंका दहन से शोज़ आरंभ हो जाते थे। और इतने लोग फिल्म देखने के लिए जमा होते थे कि सबको टिकट नहीं मिल पाता था। जिससे लोगों के बीच काफी धक्का-मुक्की और लड़ाईयां हो जाती थी। कई बार तो टिकट किसे मिलेगा इसका फैसला लोग टॉस उछालकर किया करते थे।
उन दिनों किसी भी सीन पर खुश हो कर सिक्कों (करंसी) को सक्रीन पर उड़ाने का बहुत रिवाज था, जिस कारण शाम होते होते इतने सिक्के जमा हो जाते थे कि उन्हें बोरों में भरकर दादासाहेब फाल्के के ऑफिस तक पहुंचाया जाता था।1
हिंदू द्रोही मीडिया के लिए बहुत फंडिंग है, किंतु हिंदुत्ववादी मीडिया को अपना खर्चा चलाना भी मुश्किल है। हिंदुत्व/धर्म के इस अभियान को जारी रखने के लिए कृपया हमे DONATE करें। Donate Now या 7837213007 पर Paytm करें या Goole Pay करें।