“Mughuliya havoc on Hindus in independent India, no facilities for pilgrims, but Jaziya is Jaziya. Know more about “Maa Yamanotri” shrine.”

प्रसिद्ध मंदिरों पर सरकारों के कब्जे हैं, वहां का चढ़ावा हिंदुओं के कितने काम आता है ? तीरथ यात्रियों की सेवा करने वालों पे टैक्स लगाया जाता है।

जय यमुना मईया जी

सनातन 🚩समाचार🌎 यह एक विडंबना ही है कि कहने को तो हिंदुस्तान को आजाद हुए 75 वर्ष हो चुके हैं परंतु इन 75 वर्षों के बाद भी हिंदुओं की धार्मिक आस्थाओं पर हो रहा जुल्म बजाएं खत्म होने के घटने के दिनों दिन बढ़ता ही दिख रहा है गौ हत्या मंदिरों को तोड़ा जाना मूर्तियों को खंडित किया जाना और देवी-देवताओं के अपमान हर रोज हो रहे हैं जिनसे सभी सनातनी बहुत आहत हैं परंतु इसके साथ ही बकायदा सरकारी तौर पर भी हिंदुओं के साथ भारी अन्याय किया जा रहा है हिमाचल में पढ़ते प्रसिद्ध शक्तिपीठ छिन्नमस्तिका/चिंतपूर्णी जी के दर्शनों को जाने वाले यात्रियों की सेवा के लिए रास्ते में निशुल्क भंडारे लगाने वाले लोगों को टैक्स देना पड़ता है और इसके साथ ही बात करें अगर यमुनोत्री जी की तो यहां पर भी हालात लगभग वैसे ही हैं चिंतपूर्णी जी के रास्ते में कोई भी सुविधा की व्यवस्था नहीं है और इधर यमुनोत्री जी में भी यात्रियों की सुविधा के लिए कोई व्यवस्था नहीं है इस कठिन चढ़ाई में यात्री किसी तरह यात्रा करते हुए मां यमुनोत्री जी के मंदिर में पहुंचते हैं।

‘माता यमुनोत्री का मंदिर’

बता दें कि मां यमुनोत्री मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित भगवान यम और देवी यमुना को समर्पित है। यह मंदिर गढ़वाल हिमालय के पश्चिम में समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह वह स्थान है, जहाँ से यमुना नदी निकली है। यहाँ पर प्रतिवर्ष गर्मियों में तीर्थ यात्री आते हैं। यमनोत्री धाम हिन्दुओ के चार धामों में से एक है। इस मंदिर को ‘माता यमुनोत्री का मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है।

जो यमुना जी में स्नान करता है वो अकाल मृत्यु से बच जाता है

प्राप्त विवरणों के अनुसार माता यमुना जब पृथ्वी पर आयी तो उन्होंने अपने भाई को छाया के अभिशाप से मुक्त कराने के लिए घोर तपस्या की और उन्हें अभिशाप से मुक्त करा दिया। यमुना जी की तपस्या देख यम बहुत खुश हुए और वरदान दिया तथा वरदान में स्वव्छ नदी भी दी ताकि सभी को स्वच्छ जल उपलब्ध हो। ऐसा कहा गया है की जो यमुना नदी में स्नान करता है वो अकाल मृत्यु से बच जाता है और मोक्ष को प्राप्त होता है। जो लोग यमुना जी में स्नान करते हैं, उन्हें यम मृत्यु के समय पीड़ित नहीं करते हैं। यमुनोत्री के पास ही कुछ गर्म पानी के स्रोते/कुंड भी हैं। तीर्थ यात्री इन स्रोतों के पानी में अपना भोजन पकाते हैं। यमुनाजी का मन्दिर यहाँ का प्रमुख आराधना मन्दिर है।

यमुनोत्री मंदिर का इतिहास और जानकारी ……

यमुना देवी का तीर्थस्थल, यमुना नदी के स्त्रोत पर स्थित है। यमुनोत्री का वास्तविक स्त्रोत जमी हुई बर्फ़ की एक झील और हिमनद (चंपासर ग्लेसियर) है जो समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है। इस स्थान पर “संत असित जी” का आश्रम भी था। यमुना देवी के मंदिर का निर्माण, टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रताप शाह द्वारा किया गया था। वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। भूकम्प से एक बार इसका विध्वंस हो चुका है, जिसका पुर्ननिर्माण कराया गया। यमुना जी जल की परिशुद्धता, निष्कलुशता एवं पवित्रता के कारण भक्तों के हृदय में यमुना के प्रति अपार श्रद्धा और भक्ति उमड पड़ती है।

विशाल शिला स्तंभ – दिव्य शिला

पौराणिक विवरण के अनुसार असित मुनि की पर्णकुटी इसी स्थान पर थी। यमुना देवी के मंदिर की चढ़ाई का मार्ग वास्तविक रूप में दुर्गम और रोमांचित करने वाला है। मार्ग पर अगल-बगल में स्थित गगनचुंबी, मनोहारी बर्फीली चोटियां तीर्थयात्रियों को सम्मोहित कर देती हैं। इस दुर्गम चढ़ाई के आस-पास घने जंगलो की हरियाली मोहित करने वाली है। मंदिर प्रांगण में एक विशाल शिला स्तम्भ है जिसे दिव्यशिला के नाम से जाना जाता है। यमुनोत्री मंदिर 3235 मी. उँचाई पर स्थित है। यमुनोत्री मंदिर में मई से अक्टूबर तक श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचते हैं। शीतकाल में यह स्थान पूर्णरूप से हिमाछादित रहता है।

यमुनोत्री मंदिर की जानकारी ……

कलिन्द पर्वत पर बहुत ऊँचे से हिम पिघलकर यहाँ जल के रूप में गिरता है। इसी से यमुना का नाम कालिन्दी है। यमुनोत्री चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है। पहला धाम यमुनोत्री से यमुना का उद्गम मात्र एक किमी की दूरी पर है। यहां बंदरपूंछ चोटी (6315 मी.) के पश्चिमी अंत में फैले यमुनोत्री ग्लेशियर को देखना अत्यंत रोमांचक है। यमुना जी नदी का स्रोत कालिंदी पर्वत है। पानी के मुख्य स्रोतों में से एक सूर्यकुण्ड है जो गरम पानी का स्रोत है। चारों धाम यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ की पूरी यात्रा करनी हो तो यमुनोत्री से आरंभ करते हैं। मूलतः ये यात्रा ऋषिकेश से प्रारंभ होती है।

जल के कुंड में प्रसाद पकता है

अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर पवित्र मंदिर के कपाट खुलते हैं और दीपावली (अक्टूबर-नंवबर) के पर्व पर बंद हो जाते हैं। सूर्यकुंड अपने उच्चतम तापमान के लिए विख्यात है। भक्तगण देवी को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए कपडे की पोटली में चावल और आलू बांधकर इसी कुंड के गर्म जल में पकाते है। देवी को प्रसाद चढ़ाने के पश्चात इन्ही पकाये हुए चावलों को प्रसाद के रूप में भक्त जन अपने अपने घर ले जाते हैं। सूर्यकुंड के निकट ही एक शिला है जिसे दिव्य शिला कहते हैं। इस शिला को दिव्य ज्योति शिला भी कहते हैं। भक्तगण भगवती यमुना की पूजा करने से पहले इस शिला की पूजा करते हैं।

https://youtu.be/vKp1UEO8v-o
वीडियो में पीड़ा

सनातन 🚩समाचार🌎 उत्तराखंड सरकार से विनती करता है की हिंदुओं के इस पवित्र तीर्थ में हो रहे अन्याय को तुरंत खत्म करे।

By Ashwani Hindu

अशवनी हिन्दू (शर्मा) मुख्य सेवादार "सनातन धर्म रक्षा मंच" एवं ब्यूरो चीफ "सनातन समाचार"। जीवन का लक्ष्य: केवल और केवल सनातन/हिंदुत्व के लिए हर तरह से प्रयास करना और हिंदुत्व को समर्पित योद्धाओं को अपने अभियान से जोड़ना या उनसे जुड़ जाना🙏

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