उन्होंने गोलियों से मारा था अब —– गौरक्षक गुंडे हैं —- गौरक्षक मोब्लिंचर हैं —–
हिंदुओं को सब कुछ भूल जाने की आदत है इसलिए याद दिलादें की आज के ही दिन “सात नवंबर 1966” को गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने का कानून मांगने के लिए दिल्ली में संसद भवन के बाहर जुटी साधु-संतों की भीड़ पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाई गई थीं। इस गोलीबारी में कितने साधुओं की/हिंदुओं की मौत हुई थी, इस पर आज भी विवाद है। यह संख्या आठ-दस से लेकर सैकड़ों के बीच बताई जाती है, लेकिन आजाद भारत के इतिहास की ये एक ऐसी बड़ी घटना थी जिसमे हिंदुओं को सरकारी गोलियों द्वारा भूना गया था।
गो भक्त बलिदानी चौक
इस हिन्दू हत्याकांड ने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के लिए परेशानी खड़ी कर दी थी। इस घटना की 53वीं वर्षगांठ पर गुरुवार को कुछ संगठनों ने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर पूरे देश में गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने की मांग की तथा जिस चौराहे पर साधुओं का रक्त बहाया गया था, उस चौक का नाम ‘गो भक्त बलिदानी चौक’ रखने की मांग की गई। हिंदू धर्म का आधार है गौ माता सभी देवताओं का वास है गौ माता शास्त्रों के अनुसार गौ माता पृथ्वी पर चलता फिरता तीर्थ है। गए की महिमा से अनेकों ग्रंथ भरे पड़े हैं परंतु इसके साथ ही हिंदुओं का यह भी दुर्भाग्य है कि आज कोई भी छछूंदर उठकर यह बोल देता है के गोमूत्र पीने वाले यह गोबर खाने वाले यह और भी ना जाने क्या-क्या।
गौभक्त अपमानित हैं
प्रत्येक सनातनी व्यक्ति गौ माता के प्रति आदर रखता है और कुछ भी करके अपने धर्म के आधार गौ माता को बचाना चाहता है फिर भी हिंदुस्तान में गौ माता की रक्षा के लिए कोई भी विधान नहीं है और गौ माता का महत्व समझाने वाले गौ रक्षक हमेशा जीत और प्रयास करते रहते हैं कि कैसे भी करके गौ माता की रक्षा की जाए। लेकिन इतने सब के बावजूद गौ रक्षक और गौ भक्त इस देश के सबसे अपमानित समूहों में से हैं, इस पर कोई दोराय नहीं हो सकती। कभी भारत में बैठकर रिपोर्टिंग करने वाली विदेशी रिपोर्टर फ़ुरक़ान खान “गौमूत्र पीने वालों, अपना गौमूत्र वाला धर्म छोड़ दो, आधी समस्याएँ दूर हो जाएँगी” की नसीहत दे कर चलीं जातीं हैं, क्योंकि पता है भारत सरकार कुछ नहीं करेगी।
गौरक्षक गुंडे हैं।
कभी आदिल डार गौमूत्र पीने वाले काफ़िरों को सबक सिखाने के लिए वीडियो संदेश छोड़कर पुलवामा हमला करता है, ताकि उन्हें पता चल जाए उनका क्या हाल होने वाला है। लिबरल गिरोह में जिसे लगता है कि किसी हिन्दू से कोई ट्विटर बहस वह हारने वाला है, वह ‘गौ भक्त’, ‘गौ रक्षक गुंडे’ और ‘गौमूत्र पीने वाले’ का तमाचा मार कर ब्लॉक कर देता है- क्योंकि हमारे खुद के नेता ही ये कहते हैं कि “गौरक्षक गुंडे हैं।”
यह कोई 2014 या 2016 में पैदा हुई बीमारी नहीं है- आज़ादी के बाद से इस देश के नेता हमेशा ही गौ भक्तों को हेय दृष्टि से ही देखते रहे हैं। भले जी वो जनता से गाय-बछड़े का चुनाव चिह्न लगाकर वोट क्यों न बटोर रहे हों। ऐसे नेताओं में अग्रणी नाम भारत के सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्रियों में गिनी जाने वालीं ‘आयरन लेडी’ इंदिरा गाँधी का है।
आज से 53 साल पहले आज ही के दिन 7 नवंबर, 1966 को; विक्रम संवत में कार्तिक शुक्ल अष्टमी, जिसे गोप अष्टमी भी कहते हैं, इंदिरा गाँधी की सरकार ने निहत्थे साधु-संतों के नेतृत्व में गौ हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की
लोकतान्त्रिक तरीके से माँग कर रहे 3 से 7 लाख की भीड़ पर गोली चलवाई, आँसू गैस के गोले छोड़े, लाठियाँ बरसवाईं। दरअसल, पचास के दशक के बहुत प्रसिद्ध संत स्वामी करपात्री जी महाराज लगातार गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक कानून की मांग कर रहे थे। लेकिन केंद्र सरकार इस तरह का कोई कानून लाने पर विचार नहीं कर रही थी। इससे संतों का आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा था।
विश्व हिन्दू परिषद
उनके आह्वान पर सात नवंबर 1966 को देशभर के लाखों साधु-संत अपने साथ गायों-बछड़ों को लेकर संसद के बाहर आ डटे थे। इस प्रदर्शन के आयोजक थे भारतीय जन संघ, हिन्दू महासभा आर्य समाज के नेता, विश्व हिन्दू परिषद और सनातन धर्म सभा नामक 1952 में बना संगठन। हिंदुओं के भारी जन सैलाब को संसद भवन के बाहर रोक दिया गया। संतों को रोकने के लिए संसद के बाहर बैरीकेडिंग कर दी गई थी। रोके जाने के बाद साधु-संतों ने अंदर बैठे सत्ताधीशों को निशाने पर लेकर इकठ्ठा भीड़ को सम्बोधित करना शुरू कर दिया। इसके पहले काफ़ी समय से माँग की जा रही थी कि संविधान के उन हिस्सों, जिन पर अमल करना सरकार के लिए जरूरी नहीं, से गौ-रक्षा को सरकार असली, ठोस नीति के रूप में कानून की शक्ल दे।
संतों पर गोली
इसको लेकर आंदोलन नेहरू के समय से चल रहा था और कॉन्ग्रेस के भीतर भी इसके समर्थकों की कमी नहीं थी। लेकिन मोहनदास करमचंद गाँधी की विरासत की दावेदारी से सत्ता पाने वाले जवाहरलाल नेहरू के आगे आवाज़ें घुटी हुईं थीं। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी सरकार को यह खतरा लग रहा था कि संतों की भीड़ बैरीकेडिंग तोड़कर संसद पर हमला कर सकती है। कथित रुप से इस खतरे को टालने के लिए ही पुलिस को संतों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया गया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा को इस बात का अहसास था कि वे बातचीत से हालात को संभाल लेंगे, लेकिन मामला हाथ से निकल गया और गोलीबारी तक पहुंच गई।
गौरक्षा कानून की मांग पर इंदिरा गाँधी ने मीडिया में स्पष्ट कर दिया था कि वे ऐसी किसी माँग के आगे नहीं झुकेंगी।
गौभक्तों की इस रैली में वे नगा साधु भी शामिल हुए, जो आम तौर पर समाज से दूर रहते हैं, जो अपने पास आने वाले अधिकांश श्रद्धालुओं को भी दौड़ा कर दूर भगा देते हैं। इस रैली में 15,000 के आस-पास तो केवल साधु-संन्यासी ही थे। अन्य रिपोर्टों में इसके अलावा बड़ी संख्या में स्त्रियों और बच्चों के भी होने की बात कही जाती है। जब रैली की मांग को अनसुना कर दिया गया तब भीड़ में उत्तेजना फैल गयी और भीड़ की उत्तेजना के जवाब में पुलिस ने लाठियाँ भांजनी, गोलियाँ चलानी और आँसू गैस के गोले दागने शरू कर दिए। बाद में विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने वाले चम्पत राय उस रैली में बतौर बीएससी के एक छात्र मौजूद थे।
हिंदुओं का नरसंहार
हिंदुओं की उस रैली में मरने वालों की संख्या पर बहुत विवाद है- सरकारी आंकड़ों में केवल 7 या 8 लोग मरे बताए गए जबकि एक अखबार में अगले फिन 500 से अधिक लोगों के अस्पताल में भर्ती होने की बात छपी थी। ऐसा माना जाता है कि उस दिन 5000 से अधिक हिंदुओं का नरसंहार किया गया था। इस घटना से यह तो साफ़ पता चलता है कि भारतीय सत्ता हिन्दू-विरोध की बुनियाद पर बने सेक्युलरिज़्म नामक सिद्धांत की वाहक ‘सेक्युलरासुर’ हमेशा से रही है। गौ रक्षकों को उस समय भी अपमान, हिंसा, हत्या के अलावा कुछ नहीं मिलता था, और आज भी गौरक्षक उसी स्थिति में ही हैं।
गोहत्या कानून
सिक्किम देश का पहला राज्य माना जाता है, जिसने गोहत्या पर प्रतिबंध का कानून बनाया है। सिक्किम के अलावा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में गोहत्या पर प्रतिबंध है। दिल्ली और चंडीगढ़ में भी गोहत्या प्रतिबंधित है। केंद्र सरकार के स्तर पर गोहत्या रोकने के लिए अभी तक कोई कानून नहीं बनाया गया है। और ये भी प्रमाणिक है कि जिन राज्यों में गौहत्या पर पाबंदी हैं वहां भी गौहत्याएं हो रही हैं।
Today the saints were roasted with bullets, Delhi had turned red with the blood of Hindus, their crime was to demand cow protection law.