अफगानिस्तान सरकार का समापन अब कभी भी हो सकता है। चारों तरफ से घिरे बेबस अफगानी राष्ट्रपति ने तालिबान को संधिप्रस्ताव भेजा है।
इसका सीधा मतलब यह कि अब सरकार लाचार है और मुकाबले में असमर्थ है । अफगान सेना का मनोबल टूट चुका है , वह किसी भी समय सरेंडर को तैयार है । जाहिर है अफगान सरकार चारों ओर से घिर चुकी है , तालिबान के पास अब केवल काबुल कब्जाना बाकी है । राष्ट्रपति अपने विशेष विमान से कब देश छोड़ भागें , कहना मुश्किल है । बहुत संभव है कि आज की रात सरकार के लिए आखिरी रात साबित हो ।
18 साल सुरक्षा देने के बावजूद अमेरिका न तो तालिबानियों का सफ़ाया कर पाया और न ही अफगानिस्तान को आंतरिक रूप से सुरक्षित कर पाया । यह करने में पहले रूस भी नाकाम साबित हुआ और आरम्भ में तेजी दिखाने के बाद में अमेरिका ने भी कुछ खास करना छोड़ दिया । भारत जैसे देश ने सैकड़ों करोड़ डॉलर अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में लगा दिए । अब घाटे में भारत ही रहे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए । अफगानी सरकार आखिरी सांस ले रही है , तालिबानियों की क्रूरता से भयभीत लोग देशभर से काबुल भाग आए हैं , मैदानों और बागों में पड़े हैं । मौत का शिकंजा यहां भी चारों ओर से कड़ा होता जा रहा है ।
अमेरिका ही अफगानिस्तान को बचाए
दुनिया में 56 इस्लामिक देश हैं । सभी चुपचाप बैठे हुए निर्दोष अफगानियों पर कोड़े बरसते देख रहे हैं , अपने भाइयों के गले काटे जाते देख रहे हैं । पाकिस्तान और तुर्की तो खैर तालिबानियों के आका हैं ही , बाकी देशों को अपने मुस्लिम भाइयों को बचाने में कोई रुचि नहीं । भारत सहित दुनिया का कोई मुस्लिम नेता आतंकी तालिबानियों के ख़िलाफ़ एक लफ़्ज बोलने को तैयार नहीं। वे सब चाहते हैं कि जिस ईसाई अमेरिका को वे गालियाँ देते आए हैं , वही अफगानिस्तान को बचाए। अजीब फलसफ़ा है अपने बिरादरों के लिए ।
इस्लामिक जगत की सहानुभूति हमेशा लादेन , बगदादी , जवाहिरी आदि की कम्पनी से रही है । इराक या ईरान हो , लेबनान , सीरिया या सूडान ; ये आतंकी मार तो मुसलमानों को ही रहे हैं । इस्लामिक जगत अपने कईं देशों में तो पश्चिमी संस्कृति ले आया है , लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में कट्टरवादियों के साथ खड़ा दिखाई देता है । पाकिस्तान की आईएसआई तालिबान को प्रशिक्षण देती है , तुर्की हथियार देता है , वित्तपोषण करता है । आपको याद हो तो बताइए , हमने कभी भारत के मुस्लिम नेताओं को हाफिज , लादेन , तालिबान आदि की भर्त्सना करते हुए नहीं देखा । कश्मीर के मसले पर भी मुस्लिम नेता चुप रहते हैं । यह दुर्भाग्यपूर्ण है, अच्छी बात नहीं है।
खैर, जो होता है देखते हैं। अफगानी बच्चियों और औरतों के बहुत बुरे दिन आ गए हैं । 12 से 45 साल की बच्चियों और औरतों को सैकड़ों की संख्या में उनके मां बाप से छीनकर तालिबानी ले जा रहे हैं । बच्चे वाली माओं के शिशुओं को मौत के घाट उतारकर औरतें उठाई जा रही हैं । त्राहि त्राहि मची है , इस्लामिक देश अफगानियों को अकेला छोड़कर बंसरी बजा रहे हैं । इंसानियत चौराहों पर पड़ी हुई सिसक रही है । चारों तरफ हाहाकार सुनाई दे रहा है । मानवता के पतन की इस संध्या में बेकसूर अफगानी जनता द्रौपदी की तरह टकटकी लगाए आकाश की ओर अपलक निहार रही है । आकाश में घोर अंधकार है , सर्वत्र निराशा छाई है ।
सेकुलरी सभ्यता, गंगा-जमुनी तहज़ीब और भाईचारे की भांग में अपनी भावी पीढ़ियों को दफ़्न करने वाले सेकुलर मूर्खों, अपनी आंखों से देख लो, यही है यही है तुम्हारा असली ……………..