Jhansi’s Rani Lakshmi Bai Ji is an inspiration for every Hindu, know everything about her.”

धर्म के लिए लड़ने वालों का ही सम्मान होता है, कायरों का कोई जिक्र नहीं होता इतिहास में।

सनातन🚩समाचार🌎 आरंभ से ही अपने सनातन धर्म के लिए और राष्ट्र के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों की कमी नहीं रही है। हमारे बहुत सारे महान पुरखे अपने देश और धर्म की रक्षा के लिए बहुत वीरता से लड़े हैं। उनमें से एक हैं “झांसी की महान रानी लक्ष्मीबाई जी” उनकी चर्चा किए बिना अन्य योद्धाओं की चर्चा करने का कोई औचित्य नहीं है।

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जी का जीवन परिचय

लक्ष्मीबाई जीवभारत के पहले स्वतंत्र संग्राम के समय में बहादुर वीरांगना थीं। झांसी की रानी ने आखिरी दम तक अंग्रेजों के साथ लड़ाई की थी। इनकी वीरता की कहानियां आज भी प्रचलित हैं, मरने के बाद भी झांसी की रानी अंग्रेजों के हाथ में नहीं आई थीं। रानी लक्ष्मीबाई अपनी मातृभूमि और अपने धर्म के लिए जान न्यौछावर करने तक तैयार थी।’ मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’  इनका यह वाक्य  बचपन से लेकर अभी तक हमारे साथ है। यहाँ झांसी रानी की कहानी के बारे में विस्तार से बताया गया है।

आप का जन्म 19 नवंबर 1828 वाराणसी भारत में हुआ था। इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम भागीरथी सप्रे था। इनके पति का नाम नरेश महाराज गंगाधर राव नायलयर और बच्चे का नाम दामोदर राव और आनंद राव था। झांसी की रानी का नाम उनके माता पिता ने मणिकर्णिका रखा था। लेकिन शादी के बाद उनका नाम रानी लक्ष्मीबाई हो गया। उनके बचपन का नाम मनु भी था।

रानी लक्ष्मी बाई जी का बचपन

रानी लक्ष्मी बाई का असली नाम मणिकर्णिका था, बचपन में उन्हें प्यार से मनु कह कर बुलाते थे। उनका जन्म वाराणसी में 19 नवंबर 1828 मराठी परिवार में हुआ था। वह देशभक्ति ,बहादुरी, सम्मान का प्रतीक है। इनके पिता मोरोपंत तांबे मराठा बाजीराव की सेवा में थे और उनकी माता एक विदुषी महिला थी। छोटी उम्र में ही रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी माता को खो दिया था। उसके बाद उनके पिता ने उनका पालन पोषण किया, बचपन से ही उनके पिताजी ने रानी लक्ष्मीबाई को हाथियों और घोड़ों की सवारी और हथियारों का उपयोग करना सिखाया था। नाना साहिब और तात्या टोपे के साथ रानी लक्ष्मीबाई पली-बढ़ी थी। अपको बचपन से ही धर्म रक्षा के संस्कार प्राप्त हुए।

झांसी का किला

झांसी के किले की नींव आज से करीब कई सौ साल पहले 1602 में ओरछा नरेश वीरसिंह जूदेव के द्वारा रखी गई। ओरछा (मध्यप्रदेश में एक कस्बा) झांसी से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बंगरा पहाड़ी पर 15 एकड़ में फैले इस विशालकाय किले को पूरी तरह तैयार होने में 11 सालों का समय लगा और यह 1613 में बनकर तैयार हुआ। किले में 22 बुर्ज और बाहर की ओर उत्तर तथा उत्तर-पश्चिम दिशा में खाई है, जो दुर्ग की ओर ढाल बनकर आक्रमणकारियों को रोकती हैं।

यही कारण है कि इस किले की पूरे संसार में इतनी चर्चा होती है। पहले झांसी ओरछा नरेश के राज्य में आती थी जो बाद में मराठा पेशवाओं के आधीन थी। मराठा नरेश गंगाधर राव से शादी होने के बाद मणिकर्णिका को लक्ष्मीबाई कहा जाने लगा। इसलिए उनके बलिदान के साथ उनकी छाप किले में हर जगह देखने को मिलती है।

रानी लक्ष्मीबाई जी का विवाह

रानी लक्ष्मीबाई का विवाह झांसी के महाराज राजा गंगाधर राव के साथ हुआ था। विवाह के बाद मणिकर्णिका का नाम बदलकर लक्ष्मीबाई से जाना जाने लगा। फिर वह झांसी की रानी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। 1851 में उनके बेटे का जन्म हुआ था, परंतु 4 महीनों के बादउसकी मृत्यु हो गई थी। कुछ समय बाद झांसी के महाराजा ने दत्तक ( आनंद राव) पुत्र को अपनाया।

रानी जी के घोड़े का नाम

महल और मंदिर के बीच जाते समय रानी लक्ष्मीबाई घोड़े पर सवार होकर जाती थीं या फिर कभी कभी  पालकी  द्वारा भी जाती थीं। सारंगी ,पवन और बादल उनके घोड़े में शामिल थे। 1858 में इतिहासकारों के अनुसार यह माना गया है कि किले की तरफ भागते समय रानी लक्ष्मीबाई बादल पर सवार थी।

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रानी लक्ष्मी बाई जी के पति की मृत्यु

2 साल बाद सन 1853 में बीमारी के चलते हुएउनके पति की मृत्यु हो गई थी।बेटे और पति की मृत्यु के बाद भी रानी लक्ष्मीबाई हिम्मत नहीं हारी। जब उनकी पति की मृत्यु हुई थी तब रानी लक्ष्मीबाई की उम्र केवल 25 वर्ष थी। 25 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने सारी जिम्मेदारियां संभाल ली थीं।

रानी लक्ष्मीबाई जी का उत्तराधिकारी बनना

जब महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई थी  ब्रिटिश लोगों ने कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में उसे स्वीकार नहीं किया था। उस समय गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी एक बहुत ही शातिर इंसान था , जिसकी नजर झांसी पर थी।वो झांसी पर कब्जा करना चाहता था। क्योंकि उसका कोई वारिश नहीं था। परंतु झांसी की रानी इसके खिलाफ थी, वह किसी भी हाल में किला नहीं देना चाहती थी। रानी को बाहर निकालने के लिए ,उन्हे 60000 वार्षिक पेंशन भी दी जाएगी। झांसी की रक्षा करने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने एक मजबूत सेना को इकट्ठा किया। इस सेना में महिलाएं भी शामिल थी , कुल 14000 विद्रोह को इकट्ठा किया और सेना बनाई थी।

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रानी लक्ष्मीबाई जी का कालपी युद्ध

23 मार्च 1858 को झांसी की लड़ाई शुरू हो गई थी। अपनी सेना के साथ मिलकर झांसी को बचाने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने लड़ाई लड़ी थी। परंतु ब्रिटिश लोगों ने उसकी सेना पर अधिकार कर लिया था। फिर इसके बाद अपने बेटे के साथ रानी लक्ष्मीबाई कालपीचली गई थी। कालपी जाकर उन्होंने तात्या टोपे और दूसरे सभी विद्रोहियों के साथ मिलकर एक नई सेना बनाई थी।

झांसी की रानी की मृत्यु कैसे हुई ?

18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हुई थी। जब रानी लक्ष्मीबाई जी अंग्रेजों से अंतिम युद्ध लड़ते हुए घायल हो गई और अंग्रेज उनका पीछा कर रहे थे, तब एक अंग्रेज ने गोली चलाई, जो रानी लक्ष्मीबाई की बाई जंघा में लगी।

इस समय रानी जी के दोनों हाथों में तलवारें थीं, लेकिन गोली लगने के बाद जब सम्भलना मुश्किल हुआ, तो उन्होंने बाएं हाथ की तलवार फेंक दी और लगाम पकड़ी।

गोली चलाने वाले अंग्रेज को रानी ने दाएं हाथ की तलवार से मार  किया। इसी समय एक और अंग्रेज ने तलवार से रानी लक्ष्मीबाई के सिर पर प्रहार किया, जिससे रानी के सिर का एक हिस्सा कट गया और दाई आंख बाहर आ गई।

ऐसी परिस्थिति में भी बहादुर रानी ने उस अंग्रेज का कंधा काट दिया। तब तक रानी के अन्य साथी भी आ पहुंचे और उन्होंने गुल उस अंग्रेज के 2 टुकड़े कर दिए। इसके बाद रानी जी को एक मंदिर में ले जाया गया। मंदिर में प्रणाम करके रानी लक्ष्मीबाई जी ने आखिरी सांस ली और वीरगति को प्राप्त हो गईं। और उनके अंतिम संस्कार के समय वहां पर रघुनाथ, देशमुख व बालक दामोदरराव थे।

रानी लक्ष्मीबाई के अंतिम समय का ये वर्णन वृंदावनलाल वर्मा ने किया है। वृंदावनलाल वर्मा के परदादा झांसी के दीवान आनंदराय थे, जिन्होंने रानी लक्ष्मीबाई का साथ देते हुए वीरगति पाई। इस अंतिम समय के बारे में वृंदावनलाल को उनकी परदादी ने बताया, उस समय वृंदावनलाल की आयु 10 वर्ष थी।

ब्रिटिश जनरल हयूरोज ने रानी लक्ष्मीबाई की बहुत सारी तारीफ में कहा था कि वह बहुत चतुर, ताकतवर और बहादुर योद्धा थीं।

रानी लक्ष्मीबाई का पुराना नाम क्या है ? रानी लक्ष्मीबाई का पुराना नाम मणिकर्णिका था।

रानी लक्ष्मी बाई के घोड़े का क्या नाम है ? रानी लक्ष्मीबाई के घोड़े का नाम सारंगी था।

झांसी की रानी के गुरु का क्या नाम था ? झांसी की रानी के गुरु का नाम संत गंगा दास था।

झांसी की रानी किसकी बेटी थी ? झांसी की रानी के पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे था।

छबीली किसका नाम है ? रानी लक्ष्मीबाई जी का एक  प्यार नाम छबीली भी था।

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By Ashwani Hindu

अशवनी हिन्दू (शर्मा) मुख्य सेवादार "सनातन धर्म रक्षा मंच" एवं ब्यूरो चीफ "सनातन समाचार"। जीवन का लक्ष्य: केवल और केवल सनातन/हिंदुत्व के लिए हर तरह से प्रयास करना और हिंदुत्व को समर्पित योद्धाओं को अपने अभियान से जोड़ना या उनसे जुड़ जाना🙏

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