“Does Lord Bhole Nath take intoxicants? Also those questions to which we should know the answers.”
हर हर महादेव ॐ नमः शिवाय हर हर महादेव हर हर महादेव ॐ नमः शिवाय हर हर महादेव
सनातन🚩समाचार🌎भगवान शंकर को आदि और अनादि माना गया है। हिन्दू धर्म में वे सर्वोच्च हैं। उनका किसी भी तरह से जाने और अनजाने अपमान करने वाले का सर्वनाश अवश्य होता है। हम यहां बात करेंगे त्रिदेवों में (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) से एक महेश जी की जो माता पार्वती के पति हैं जिन्हें शंकर कहा जाता है और जिनको भक्तलोग शिव भी कहते हैं।
शंकर के संबध में विधर्मियों ने कुछ सवाल खड़े किए हैं तो कुछ धर्मियों ने भी उनके संबंध में भ्रम को फैलाने का पाप किया है। दोनों ही क्षमा योग्य नहीं है। कुछ लोग जानबूझकर भ्रम फैलाने के लिए भगवान शिव और शंकर को भिन्न-भिन्न बताते हैं जबकि उनकी इस बात का खंडन रामेश्वर तीर्थ में होता है जहां पर भगवान श्री राम जी ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले समुद्र के किनारे बालू का शिवलिंग बनाया उसकी पूजा अर्चना की तब प्रसन्न होकर उस बालू शिव लिंग में से साक्षात भगवान शिव शंकर प्रकट हुए, तथा विजई होने का वरदान दिया। इससे सिद्ध होता है कि शिव और शंकर दो नहीं बल्कि एक हैं।
और कुछ लोग शिव भगवान जी के नाम पर भांग पीते हैं, नशे करते हैं। ऐसे लोग तर्क देते हैं कि भगवान भोलेनाथ तो स्वयं भांग पीते हैं जबकि सत्य यह है कि भगवान भोलेनाथ ने समुद्र मंथन के समय प्रत्येक वह वस्तु ग्रहण कर ली थी जो प्राणी मात्र के लिए हानिकारक थी और तब भगवान भोलेनाथ ने भयंकर हलाहल/विष का भी सेवन कर लिया था, तो अगर उनकी नकल करनी ही है तो भांग के बारे में तर्क देने वाले लोग जहर क्यों नहीं पीते हैं धतूरा क्यों नहीं खाते हैं ?
और आजकल तो कुछ लोग भगवान शिव शंकर जी के नाम पर बहुत भयंकर अपराध ही करने लग गए हैं अक्सर देखा जा रहा है कि शोभायात्रा अथवा किसी शिवरात्रि के उत्सव में उन भांडों को नचाया जाता है जो भगवान भोलेनाथ का स्वांग रचा कर असभ्य और भद्दे ढंग से मटकते हैं उछल कूद करते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे कोई नशेड़ी अथवा वहशी उदंडी व्यक्ति उछल कूद कर रहा है। यह भगवान शिव शंकर जी का घोर अपमान है। ऐसे भांडों का बहिष्कार किया जाना चाहिए तथा उन लोगों को भी अकल से काम लेना चाहिए जो इस तरह के आयोजन करवाते हैं।
आइए आज हम जानते हैं भगवान शिव के संबध में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर।
प्रश्न : क्या भगवान शंकर भांग का सेवन करते थे या किसी भी प्रकार का नशा करते थे?
उत्तर : इसका उत्तर है नहीं। शिव पुराण सहित किसी भी ग्रंथ में ऐसा नहीं लिखा है कि भगवान शिव भांग का सेवन करते थे। बहुत से लोगों ने भगवान शिव के ऐसे भी चित्र बना लिए हैं जिसमें वे चिलम पीते हुए नजर आते हैं। यह दोनों की कृत्य भगवान शंकर का घोर अपमान है। यह भगवान शंकर की छवि खराब किए जाने का षड्यंत्र है।
प्रश्न : क्या भगवान शंकर को नहीं मालूम था कि गणेशजी मेरे पुत्र हैं। फिर उन्होंने अनजाने में उनकी गर्दन काट दी और फिर जब उन्हें मालूम पड़ा तो उन्होंने उस पर हाथी की गर्दन जोड़ दी ? जब शिव यह नहीं जान सके कि यह मेरा पुत्र है तो फिर वह कैसे भगवान ?
उत्तर : कुछ विधर्मी (अपना धर्म छोड़कर दूसरे का धर्म अपनाने वाला) इस तरह का प्रश्न करके हिन्दुओं के मन में भगवान शिव के प्रति भ्रम और संदेह डालना चाहते हैं। उनका तर्क है कि यदि शिव अपने पुत्र को नहीं पहचान सकें तो वे मेरी मुसिबतों में मुझे कैसे पहचानेंगे ?
इसका उत्तर है कि भगवान शिव के संपूर्ण चरित्र को पढ़ना आवश्यक है। उनके जीवन को लीला क्यों कहा जाता है ? लीला उसे कहते हैं जिसमें उन्हें सबकुछ मालूम रहता है फिर भी वे अनजान बनकर जीवन के इस खेल को सामान्य मानव की तरह खेलते हैं। लीला का अर्थ नाटक या कहानी नहीं। एक ऐसा घटनाक्रम जिसकी रचना स्वयं प्रभु ही करते हैं और फिर उसमें संलिप्त होते हैं। वे अपने भविष्य के घटनाक्रमों को खुद ही संचालित करते हैं। दरअसल, भविष्य में होने वाली घटनाकों को अपने तरह से घटाने की कला ही लीला है। यदि भगवान शिव ऐसा नहीं करते तो आज गणेश प्रथम पूज्जनीय देव न होते और न उनकी गणना देवों में होती।
प्रश्न : शिव पर बेल पत्र क्यों चढ़ाए जाते हैं?
उत्तर : पुराण में एक शिकारी की कथा है। एकबार उसे जंगल में देर हो गई। तब उसने एक बेल वृक्ष पर रात बिताने का निश्चय किया। जगे रहने के लिए उसने एक तरकीब सोची। वह सारी रात एक-एक पत्ता तोड़कर नीचे फेंकता रहा। कथानुसार, बेल के पत्ते शिव को बहुत प्रिय हैं। बेल वृक्ष के ठीक नीचे एक शिव जी की पिंडी थी।
अपने स्वरूप पर प्रिय पत्तों का अर्पण होते देख शिव प्रसन्न हो उठे, जबकि शिकारी को अपने शुभ कार्य का भान भी न था। उन्होंने शिकारी को दर्शन देकर उसकी मनोकामना पूरी होने का वरदान दिया। कथा से यह साफ है कि शिव कितनी आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। भोले नाथ की महिमा की ऐसी कथाओं और बखानों से पुराण भरे पड़े हैं।
प्रश्न : क्या है शिवरात्रि और महाशिवरात्रि ?
उत्तर : यूं तो शिव की उपासना के लिए सप्ताह के सभी दिन अच्छे हैं, फिर भी सोमवार को शिव जी का प्रतीकात्मक दिन कहा गया है। इस दिन शिव जी की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि कहते हैं। लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी पर पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है, जिसे बड़े ही हषोर्ल्लास और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
शिवरात्रि बोधोत्सव है। ऐसा महोत्सव, जिसमें अपना बोध होता है कि हम भी शिव का अंश हैं, उनके संरक्षण में हैं। माना जाता है कि सृष्टि का आरंभ इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में (ब्रह्म से रुद्र के रूप में) अवतरण हुआ था। ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात आदि देव भगवान श्री शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाली महाशक्ति के रूप में प्रकट हुए।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चंदमा सूर्य के नजदीक होता है। उसी समय जीवनरूपी चंदमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग-मिलन होता है। इसलिए इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने का विधान है।
प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं। इसलिए इसे महाशिवरात्रि या जलरात्रि भी कहा गया है। इस दिन भगवान शंकर की शादी भी हुई थी। इसलिए रात में शंकर की बारात निकाली जाती है। रात में पूजा कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेल पत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
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