“Another blow, now this anti-Hindu government has stopped the 500-year-old procession of Hindus.”
“स्टालिन” वालों के वोट (जनसंख्या) ज्यादा तो सरकार उनकी इसलिए स्नातनियों पे आघात तो होंगे ही।
सनातन🚩समाचार🌎हम से जुड़े हुए बहुत सारे लोग शायद इस बात से हैरान भी होंगे कि हम लगातार एक ही प्रकार की खबरें क्यों बताते रहते हैं परंतु हमारे नाम के अनुसार यह हमारी विवशता है कि हम वह हर खबर आप तक पहुंचाते रहे जो बाकी सारा मीडिया छिपा लेता है, क्योंकि हिंदुओं को वह सब कुछ पता होना ही चाहिए जो उनके साथ हो रहा है। हिंदुओं पर हर रोज नए-नए आघात होते रहना अब कोई नई बात नहीं रह गई है। ऐसा हर रोज होता है। इसी कड़ी में अब हिंदुओं की आस्था पर कुठाराघात किया है तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने।
धार्मिक आस्था पर आघात सहन नहीं
यहां मयीलादुथूराई कलेक्टर ने पट्टीना प्रवेशम के पारंपरिक अनुष्ठान को संपन्न करने की अनुमति देने से स्पष्ट इनकार कर दिया है। लगभग 500 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को मानवाधिकारों का हवाला देकर रोका गया है। बता दें की बरसों पुरानी इस परंपरा में धर्मपुरम अधीनम के दृष्टा को पालकी में बिठाकर उसे कंधों पर उठाकर ले जाने की धार्मिक परंपरा है। इस परंपरा पर अब स्थानीय प्रशासन के द्वारा रोक लगा दी गई है। उधर प्रशासन के इस निर्णय के बाद मठ के पदाधिकारियों और अनुयायियों ने विरोध करना चालू कर दिया है तथा यह घोषणा कर दी गई है की हिंदू अपनी धार्मिक आस्था पर आघात सहन नहीं करेंगे और इस आदेश के बावजूद पट्टिना प्रवेशम की यात्रा निकाली जाएगी। इस बार यह है यात्रा 22 मई 2022 को निकाली जानी है।
अंग्रेजों के शासन में भी इस धार्मिक अनुष्ठान को नहीं रोका गया
मदुरै अधीनम के प्रमुख हरिहर ज्ञानसंबंदा स्वामीगल ने इस बारे में कहा है कि धर्मपुरम अधीनम 500 वर्ष पुराना है, और पिछले 500 वर्षों से ही यह पट्टीना प्रवेशम निरंतर चल रहा है। इस कालखंड में अंग्रेजों के शासन में भी इस धार्मिक अनुष्ठान को नहीं रोका गया था जो अब रोका जा रहा है। इसके साथ ही वैष्णव गुरु मन्नारगुडी श्री सेंडलंग्रा जीयर का कहना है कि पट्टीना प्रवेशम एक शुद्ध धार्मिक अनुष्ठान है, इसे रोकने का अधिकार किसी को भी नहीं है। यह अनुष्ठान मठ के अनुयायियों के द्वारा किया जाता है।
500 वर्ष पुरानी इस परंपरा प्रतिबंधित
मदुरै अधिनियम को दक्षिण भारत में शैवों का सबसे प्राचीन मठ है। यह मठ तमिलनाडु के मदुरै में मीनाक्षी अम्मन मंदिर के नजदीक ही स्थित है। यह देश के सबसे महत्वपूर्ण शिव शक्ति मंदिरों में से एक है। राजस्व मंडल अधिकारी ने एक प्रतिबंध लगाने वाले आदेश में कहा है कि यह प्रथा मानवाधिकारों का उल्लंघन है। वहीं इस परंपरा के अनुयायियों का कहना है कि 500 वर्ष पुरानी इस परंपरा को प्रतिबंधित करने का अधिकार किसी के पास भी नहीं है, और इस पर रोक लगाए जाना सीधे-सीधे हिंदुओं के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप है जिसे किसी भी कीमत पर सहन नहीं किया जाएगा।
इस बारे में मदुरै अधीनम के श्री हरिहर श्री ज्ञानसंबंदा देसिका स्वामीगल के 293वे महंत जी ने कहा है कि धरमापुरम अधिनम का शैव संप्रदाय के लोगों के लिए वही महत्व है जो कैथोलिक ईसाइयों के लिए वेटिकन सिटी का है। मदुरै अधीनम ने आगे कहा की महंत को पालकी में ले जाना लोगों का अपने गुरु के प्रति सम्मान का प्रतीक है। वे स्वेच्छा से गुरु को अपने कंधों पर लेकर चलते हैं।
द्रविड़ कड़गम के जिला सचिव
तमिलनाडु सरकार को इस प्राचीन शैव मठ की पवित्र परंपरा का सम्मान करना चाहिए। मिली और जानकारी के अनुसार द्रविड़ कड़गम के नेता और वामपंथी इस प्रथा का यह बोल कर विरोध कर रहे हैं कि इससे मानवाधिकारों का हनन होता है। द्रविड़ कड़गम के जिला सचिव के थलपति राज का इस बारे में कहना है कि इंसानों के द्वारा किसी इंसान को पालकी में ले जाना मानवाधिकारों का उल्लंघन है , इसलिए इसपर यह रोक लगाई गई है।
बहुत पवित्र परंपरा है
यहां ध्यान देने वाली बात यह है की सनातन धर्म में तो आरंभ से यही यह परंपरा रही है कि भक्तजन अपने श्रेष्ठ जनों को, अपने गुरुओं को सर आंखों पर बिठाते आ रहे हैं। उन्हें पालकियों में बिठाते आ रहे हैं। यह सनातन धर्म की एक बहुत पवित्र परंपरा है। परंतु अब जबकि विधर्मीयों की जहां जहां पर सरकारें हैं वहां वहां हिंदुओं की धार्मिक आस्थाओं पर कुठाराघात होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। क्योंकि यह अकाट्य सिद्धांत है की जिनकी वोट अर्थात जनसंख्या कम है होती है उनकी वैल्यू भी कम होती है, और दुर्भाग्यवश हिंदू अपनी जनसंख्या जानबूझकर घटा ही चुके हैं।