अद्भुत और अचंभित कर देने वाली इस भक्ति को दण्डवत प्रणाम🙏
सनातन🚩समाचार🌎: सत्य सनातन धर्म की महिमा अपरम्पार है। यह वह धर्म है जो किसी ने बनाया नहीं बल्कि यह सृष्टि के आरंभ से ही बना बनाया धर्म है। सनातन धर्म की सबसे बड़ी विशेषता रही है कि इसमें भक्तों की प्रबल आस्था का होना, भगवान में प्रेम होना, अपने आराध्य पर न्योछावर हो जाना जैसे भक्त और भगवान के अनेकों प्रसंग शास्त्रों में भरे पड़े हैं। जो इस सनातन धर्म को चार चांद लगाते हैं। ऐसा ही एक भक्ति भरा दिव्य दृश्य देखने को मिला है श्री वृंदावन धाम में। श्री वृंदावन धाम में स्थित गिरिराज जी की परिक्रमा मार्ग में। वहां जाने वाले सभी श्रद्धालु गिरिराज जी की परिक्रमा करते ही हैं।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि गिरिराज जी की परिक्रमा करने वालों को श्री कृष्ण भगवान जी का सानिध्य प्राप्त होता है। बाकी सभी भक्त अपनी अपनी भावना के अनुसार गिरिराज जी की परिक्रमा करते हैं। जब भी कोई भक्त श्री वृंदावन धाम जाता है गिरिराज जी की परिक्रमा करता है तो मार्ग में बहुत सारे अद्भुत श्रद्धा पूर्ण दृश्य देखने को मिलते हैं। कोई पैदल चल रहा होता है तो कुछ लोग कार में भी परिक्रमा करते हैं, और कई लोग तो नंगे पांव भी चल रहे होते हैं। भले ही कितनी चिल्लाती धूप हो पैरों में छाले पड़ जाते हैं परंतु भक्तों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं आती है।
इसी परिक्रमा मार्ग में एक ऐसा भी दृश्य देखने में आया जो अपने आप में बहुत विस्मयकारी और श्रद्धा से परिपूर्ण था। परिक्रमा मार्ग में महाबली श्री कृष्ण भगवान जी के ये ऐसे भक्त दिखाई दिए जो सन 1984 से गिरिराज जी की परिक्रमा कर रहे हैं। उनसे बात करने पर उन्होंने बताया कि उनका नाम केशवदास है और वह 1984 से निरंतर परिक्रमा कर रहे हैं। वृद्ध हो चुके इन महानुभाव जी ने बताया कि वह 1200 मनकों के साथ दंडवत प्रणाम करते हुए परिक्रमा कर रहे हैं। और दंडवत एक बार नहीं निरंतर एक ही स्थान पर 1200 बार दंडवत करते हैं। फिर आगे बढ़ते हैं।
इन्होंने अपने साथ दो पात्र ले रखे हैं जिनमें से एक में 1200 मनके पड़े हसीन हैं, प्रत्येक दंडवत करने के बाद वह एक मन का उठाकर के आगे वाले पात्र में डाल देते हैं। इस तरह 12 मनके पूरे हो जाने पर वह फिर आगे 1200 मनकों की तपस्या के लिए तैयार हो जाते हैं। इनसे पूछने पर उन्होंने बताया कि इन्हें इनकी आयु का कुछ पता नहीं है। सही बात है ऐसे भक्तों को आयु का भान रहता भी नहीं है।
यहां पर एक और बात भी सामने आती हैं कि जिन महापुरुष जी ने इनके दिमाग में इस तरह से प्रबल तपस्या करने की बात डाली है निसंदेह वह कोटि कोटि प्रणाम के अधिकारी हैं परंतु अगर वही संत या इनके जो भी गुरु होंगे, अगर इनके दिमाग में यह बिठा देते कि “जिस तरह से श्री कृष्ण भगवान जी सारा जीवन में धर्म की रक्षा के लिए लड़ते रहे, अधर्मियों का वध करते रहे और भक्तों को बचाते रहे। उनसे प्रेरणा लेकर तुम भी शस्त्र धारी श्री कृष्ण भगवान जी की तरह आगे बढ़ो धर्म की रक्षा करो, धर्म को बचाओ।”
अगर ऐसा हुआ होता तो निस्संदेह यह महान व्यक्ति जो आज इतनी कठिन तपस्या करते हुए बृजराज की परिक्रमा कर रहे हैं तो आज स्थिति कुछ और ही होती। क्योंकि वर्तमान में सनातन धर्म पर चारों ओर से आघात हो रहे हैं। हिंदुओं की लड़कियों को लव जिहादी लिए जा रहे हैं और मिशनरीज वाले हिंदुओं के मोहल्ले के मोहल्ले गांव के गांव खा रहे हैं। अर्थात हिंदू बहुत बुरी तरह पतन के शिकार हो रहे हैं। निसंदेह भक्ति तो होनी ही चाहिए फिर भी वर्तमान की परिस्थितियों के अनुसार यह भी आवश्यक है कि अब केवल भक्ति भाव से ही काम नहीं चलने वाला है।
अब भक्तों को भगवान श्री कृष्ण जी के उस वास्तविक स्वरूप को पहचानना होगा जिनके हाथ में सदैव सुदर्शन चक्कर घूमता रहता है और जिनके पंचजन्य शंख अधर्मियों के दिल दहला देती है। सनातन🚩समाचार🌎 सहित असंख्य हिंदुओं की यही पुकार है कि हे शस्त्र धारी श्री कृष्ण भगवान जी हमें भी अपनी तरह धर्म की रक्षा करने की प्रेरणा दें 🙏 जय श्री कृष्णा 🙏
Amazing faith, but if this power had been used in protecting Dharma, then today the scene would have been different.