“Buddhists have not been able to build their own temple since 1961 under the lives of Namo Buddhae and Jai Bhim Jai Mim, now real Buddhists have done this work.”
अल्पसंख्यक बौद्धों का मौलवियों के विरुद्ध संघर्ष का ऐलान
दुर्गम रास्तों में बौद्ध
सनातन🚩समाचार🌎 हिंदू मंदिरों को तोड़े जाने की घटनाओं से तो इतिहास की किताब में भरी पड़ी हैं, परंतु इसके साथ ही आज भी वह सब कुछ जारी है जो आश्चर्य में भी डालने वाला है। क्योंकि हिंदुस्तान में बहुत सारे लोग जय भीम जय मीम करते हुए घूम रहे हैं और ऐसे ही एक बोलने वाले व्यक्ति के द्वारा नूपुर शर्मा की जीभ काट देने पर एक करोड रुपए देने का इनाम की घोषणा की है, और इसी के साथ ही सोशल मीडिया पर ऐसे बहुत सारे लोग अपनी बातें रख रहे हैं जो नमो बुद्धाय नमो बुद्धाय बोलते हुए इस तरह की बातें करते हैं की मानो हिंदू उनके सबसे बड़े शत्रु हों।
बौद्धों को उनका प्राचीन मंदिर गोंपा बनाए जाने से रोका जा रहा है
वहीं जब बौद्ध धर्म के अनुयाई अपना बौद्ध मंदिर बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हो और उनका साथ देने के बजाय तथाकथित नमो बुद्धाय वाले और जय भीम जय मीम वाले जब मौन हो जाएं तो लगता है की इन लोगों का उद्देश्य देश में केवल और केवल अशांति पैदा करना ही है। दरअसल केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के कारगिल में मौलवियों और कट्टरपंथियों के द्वारा बौद्धों को उनका प्राचीन मंदिर गोंपा बनाए जाने से रोका जा रहा है। बौद्ध अनुयाई अपना मंदिर बनाने के लिए सन 1961 से ही हाथ पांव मार रहे हैं, परंतु आज तक सफल नहीं हो पाए हैं। जिससे आखिर परेशान होकर उन्होंने एक बड़ी रैली का आयोजन किया है। जिसके साथ ही अब यह मामला तूल पकड़ चुका है।
मुसलमानों ने अपना कड़ा विरोध जताया है।
कारगिल इलाके में बौद्ध अल्पसंख्यक हैं अब इन्होंने अपने अनुयायियों के साथ मौलवियों खिलाफ आवाज उठाते हुए एक बड़ी रैली का आयोजन किया है। बौद्ध अनुयाई अपने मठ के शिलान्यास के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं जो कट्टर वादियों के चलते सफल नहीं हो पा रहा है। गत 31 मई को बौद्ध गुरु चोस्कयोंग पाल्गा रिनपोछे के नेतृत्व में लगभग 1000 से अधिक बौद्धों ने अपने मंदिर के निर्माण के लिए पद यात्रा आरंभ की थी जिसे जो 14 जून को कारगिल पहुंचना था, लेकिन इस पदयात्रा पर मुसलमानों ने अपना कड़ा विरोध जताया है। बौद्ध मत के अनुयायियों के संघर्ष को देखते हुए नेशनल सिक्योरिटी अफेयर एनालिस्ट दिव्य कुमार सोती ने बड़ी बात कही है।
अपना मंदिर बनाना चाहते हैं
उन्होंने सवाल किया है कि बौद्ध धर्म के नाम पर हिंदुओं को गाली देकर जीवन यापन करने वाले भंते करुणाकर, भीम आर्मी और वामन मेश्राम अब कहां हैं ? असली आतंकियों का सामना करने से डर लगता है क्या ?
बता दें कि बोधगुरु चोस्कयोंग पाल्गा रिनपोछ ने अपने श्रद्धालुओं सहित कारगिल में इस स्थल पर प्राचीन मठ की नींव रखने की इच्छा से यह पदयात्रा आरंभ की थी, परंतु दूसरी तरफ कट्टरपंथियों ने इसका भारी विरोध कर दिया तथा उन्होंने 2 कनाल भूमि पर मठ के शिलान्यास का विरोध किया है। कारगिल क्षेत्र शिया बहुल इलाका है। दरअसल 1969 में एक सरकारी आदेश पास किया गया था। बताया गया है कि उस आदेश में लिखा था कि इस भूमि को व्यवसायिक और रहने के लिए तो प्रयोग प्रयोग किया जा सकता है परंतु इस भूमि का उपयोग मंदिर बनाने के लिए नहीं होगा।
बौद्धों को यह मार्च राजनीति से प्रेरित है
एक तथ्य यह भी है कि 15 मार्च 1962 को जम्मू कश्मीर के जनरल डिपार्टमेंटट ने लद्दाख बोध एसोसिएशन को बोध मंदिर और धर्मशाला बनाने के लिए जमीन दी थी जिसमें उन्हें धार्मिक निर्माण करने की अनुमति दी गई थी। चल रहे विवाद के बीच कारगिल डेमोक्रेटिक गठबंधन ने डिप्टी कमिश्नर को एक पत्र लिखा है जिसमें कहा गया था कि बौद्धों को यह मार्च राजनीति से प्रेरित है। पत्र में यह भी कहा गया है कि इस मार्च से लद्दाख के परस्पर समभाव को हानि हो सकती है। इस पत्र में यह भी लिखा गया है कि KDA ने लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन के साथ एक बैठक की थी जिसमें दोनों पक्षों ने इस मामले को आपसी सहमति से सुलझाने की बात कही थी।
ऐसे में किसी भी तीसरे व्यक्ति को यह परमिशन नहीं दी जा सकती कि वह इस क्षेत्र की शांति को हानि पहुंचाए। उधर लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन के प्रमुख कर्मा शार्दुल ने इस बारे में कहा है कि वह इलाके में कोई तनाव नहीं चाहते परंतु यह हम बौद्धों का अधिकार है की हम वहां पर पूजा करें।
सामरिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील कारगिल इलाके का यह स्थानीय मुद्दा है इसमें कौन गलत है और कौन-कौन से हैं यह भी एक जांच का विषय है परंतु बड़ा सवाल यह है कि दिन-रात जय भीम जय मीम चिल्लाने वाले और बुद्ध भगवान जी का नाम लेकर हिंदुओं को पानी पी पीकर कोसने वाले तथाकथित बौद्ध अब कारगिल के बौद्धों का साथ क्यों नहीं दे रहे हैं ?