“Knowing the secret of this temple is beyond the reach of scientists, know the deeds of your great ancestors.”
7 दिन पहले छत से बारिश होती है और बारिश शुरू होने पर ……
सनातन🚩समाचार🌎 सनातन धर्म जितना प्राचीन है उतना ही रहस्यों से भरा हुआ है। सृष्टि के आदि से आरंभ हुई इस परंपरा में अनेक ऐसी रहस्यमई घटनाएं घटी हैं जिनका उत्तर आज तक कोई नहीं खोज पाया है। ऐसा ही एक रहस्यमई और पवित्र स्थान है कानपुर का श्री जगन्नाथ मंदिर।
आश्चर्यजनक है पर सत्य है
कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है की किसी भवन की छत से चिलचिलाती धूप में पानी की बूंदें टपकने लगे और बारिश की शुरुआत होते ही पानी की बुंदे टपकना बंद हो जाएं। जी हां … ये आश्चर्यजनक है पर सत्य है। उत्तर प्रदेश के कानपुर जनपद के गांव विकास खंड से तीन किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है बेहटा। यहां पर घटती है धूप में छत से पानी की बूंदों के टपकने और बारिश में छत के रिसाव के बंद होने का रहस्यमय घटना।यह चमत्कार होता है यहां पर बने हुए पवित्र और अति प्राचीन भगवान जगन्नाथ जी के मंदिर में।
इस बारे में स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि बारिश आरंभ होने के छह-सात दिन पहले मंदिर की छत से पानी की बूंदे टपकने लगती हैं और इतना ही नहीं जिस आकार की बूंदे टपकती हैं उसीके अनुसार ही बारिश होती है। बतादें की अब तो आस पास के किसान मंदिर की छत टपकने के संदेश को समझकर अपनी जमीनों को जोतने के लिए निकल पड़ते हैं। आश्चर्य की बात तो ये है कि जैसे ही बारिश शुरु होती है छत अंदर से पूरी तरह सूख जाती है। भगवान श्री जगन्नाथ जी का यह मंदिर अति प्राचीन है। यह मंदिर कानपुर जनपद के गांव विकासखंड मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूरी पर स्थित बेंहटा गांव में स्थित है।
इस मंदिर में भगवान श्री जगन्नाथ जी, बलदाऊ जी व सुभद्रा जी की काले चिकने पत्थरों की मूर्तियां विराजमान हैं। मंदिर के प्रांगण में सूर्यदेव और पद्मनाभम की मूर्तियां भी हैं। जगन्नाथ पुरी की तरह यहां भी स्थानीय लोगों द्वारा भगवान जगन्नाथ जी की यात्रा निकाली जाती है। लोगों की आस्था इस मंदिर के साथ गहरे से जुड़ी है। मंदिर की प्राचीनता व छत टपकने के रहस्य के बारे में मंदिर के पुजारी बताते हैं कि पुरातत्व विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक कई दफा आए लेकिन इसके रहस्य को नहीं जान पाए हैं अभी तक बस इतना पता चल पाया है कि मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य 11वीं सदी में किया गया था।
इस पवित्र मंदिर की दिवारें 14 फीट मोटी हैं जिससे इसके सम्राट अशोक के शासन काल में बनाए जाने के अनुमान लगाए जा रहे हैं। मंदिर के बाहर मोर का निशान व चक्र बने होने के कारण इसके चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के कार्यकाल में बने होने का भी अनुमान लगाया जाता है।