The police caught me for assault but why did they not take me away in burqa? When Reshma filed a case against the police, the court gave this decision.”

बुर्के और हिजाब की जितनी चाहत हिंदुस्तान में है उतनी तो कई इस्लामिक मुल्कों में भी नहीं है।

सनातन🚩समाचार🌎 देश के कानून के अनुसार सबको अपनी बात कहने का हक है फिर चाहे वो बात तर्क संगत हो या ना हो।

मामला दिल्ली हाईकोर्ट का। दरअसल एक मुस्लिम महिला ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उसने कहा था कि पुलिस वालों के द्वारा उसे बिना बुर्के के पुलिस थाने में ले जाया गया। महिला के अनुसार बुर्का पहनना उसकी पसंद है जो उसे पहनने नहीं दिया गया। महिला ने हाई कोर्ट में गुहार लगाई थी कि जिन पुलिस वालों के द्वारा उसे बिना बुर्के के ले जाया गया उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए और साथ ही भविष्य के लिए पुलिस को निर्देश दिए जाएं कि किसी मुस्लिम महिला को बिना बुर्के के थाने में ना ले जाया जाए।

बता दें की इस महिला के तीन भाइयों ने अपने घर के बाहर दो व्यक्तियों को बुरी तरह से पीटा था। जिसकी पीड़ित व्यक्तियों ने पुलिस में शिकायत कर दी थी। पता चला है कि जिस समय इस महिला के भाई दो व्यक्तियों को पीट रहे थे उसे समय यह अपने घर की बालकनी में खड़ी थी तथा उस समय इस महिला ने बुर्का नहीं पहना हुआ था। पुलिस के साथ अभद्रता किए जाने के बाद पुलिस इस महिला को भी पुलिस थाना में लेकर आ गई थी।

इसी के विरोध में इस महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मिली और जानकारी के अनुसार यह मामला दिल्ली के थानाक्षेत्र चांदनी महल में पड़ने वाले रकाबगंज का है। रेशमा की तरफ से वकील एम सूफियान सिद्दीकी, आलिया, नियाजुद्दीन और राकेश भुंगरा ने बहस की जबकि दिल्ली पुलिस का पक्ष एडिशनल स्टैंडिंग काउंसिल रुपाली बंधोपाध्याय ने रखा था। रेशमा के सभी आरोपों पर पुलिस ने भी अपना पक्ष अदालत में रखा।

अदालत में पुलिस ने रेशमा द्वारा लगाए गए प्रताड़ना के तमाम आरोपों को गलत बताया था। पुलिस ने यह भी दावा किया था कि खुद रेशमा ने उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए बुलाया था। पुलिस के मुताबिक तब रेशमा को यह डर था कि कहीं वो लोग उन पर हमला न कर दें, जिन्हे रेशमा के 3 भाइयों ने मिल कर पीटा है। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और उनके द्वारा पेश किए गए सबूतों को जांचा।

इस याचिका की सुनवाई के बाद दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस स्वर्ण कांत शर्मा ने अपना फैसला सुनाया। जस्टिस शर्मा ने कहा कि पुलिस की जाँच में गोपनीयता जैसी बातों के लिए जगह नहीं हो सकती। अदालत ने सुरक्षा और न्याय को ही सबसे पहली प्राथमिकता बताते हुए कहा कि इन दोनों को सुनिश्चित करने के लिए पहचान आवश्यक होती है। अदालत ने कहा कि धार्मिक या व्यक्तिगत चॉइस के नाम पर प्राइवेसी का अधिकार मिल जाने से इसके दुरूपयोग की आशंका बढ़ेगी और जाँच में रुकावट खड़ी होगी।

और अंततः अदालत ने रेशमा द्वारा दायर की गई याचिका को ख़ारिज कर दिया।

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By Ashwani Hindu

अशवनी हिन्दू (शर्मा) मुख्य सेवादार "सनातन धर्म रक्षा मंच" एवं ब्यूरो चीफ "सनातन समाचार"। जीवन का लक्ष्य: केवल और केवल सनातन/हिंदुत्व के लिए हर तरह से प्रयास करना और हिंदुत्व को समर्पित योद्धाओं को अपने अभियान से जोड़ना या उनसे जुड़ जाना🙏

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