रक्षाबंधन हिंदुओं का पवित्रतम त्योहार इसमे बसता है भाई बहन का प्यार।

बचपन में हमें अपने पाठयक्रम में पढ़ाया जाता रहा है कि रक्षाबंधन के त्योहार पर बहनें अपने भाई को राखी बांध कर उनकी लम्बी आयु की कामना करती हैं। रक्षा बंधन का सबसे प्रचलित उदाहरण चित्तोड़ की रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ का दिया जाता है। कहा जाता है कि जब गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तोड़ पर हमला किया तब चित्तोड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को पत्र लिख कर सहायता करने का निवेदन किया। पत्र के साथ रानी ने भाई समझ कर राखी भी भेजी थी। हुमायूँ रानी की रक्षा के लिए आया मगर तब तक देर हो चुकी थी। रानी ने जौहर कर आत्महत्या कर ली थी। इस इतिहास को हिन्दू-मुस्लिम एकता तोर पर पढ़ाया जाता हैं।

अब सेक्युलर घोटाला पढ़िए ——

हमारे देश का इतिहास सेक्युलर इतिहासकारों ने लिखा है। भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम थे। जिन्हें साम्यवादी विचारधारा के नेता जी ने सख्त हिदायत देकर यह कहा था कि जो भी इतिहास पाठयक्रम में शामिल किया जाये उस इतिहास में यह न पढ़ाया जाये कि मुस्लिम हमलावरों ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ा, हिन्दुओं को जबरन धर्मान्तरित किया, उन पर अनेक अत्याचार किये। मौलाना ने नेहरू की सलाह को मानते हुए न केवल सत्य इतिहास को छुपाया अपितु उसे विकृत भी कर दिया।

रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ के किस्से के साथ भी यही अत्याचार हुआ। जब रानी को पता चला की बहादुर शाह उस पर हमला करने वाला है तो उसने हुमायूँ को पत्र तो लिखा मगर हुमायूँ को पत्र लिखे जाने का बहादुर खान को पता चल गया। बहादुर खान ने हुमायूँ को पत्र लिख कर इस्लाम की दुहाई दी और एक काफिर की सहायता करने से रोका।

मिरात-ए-सिकंदरी में गुजरात विषय से पृष्ठ संख्या 382 पर लिखा मिलता है —

सुल्तान के पत्र का हुमायूँ पर बुरा प्रभाव हुआ। वह आगरा से चित्तोड़ के लिए निकल गया था। अभी वह ग्वालियर ही पहुंचा था। उसे विचार आया, “सुल्तान चित्तोड़ पर हमला करने जा रहा है। अगर मैंने चित्तोड़ की मदद की तो मैं एक प्रकार से एक काफिर की मदद करूँगा। इस्लाम के अनुसार काफिर की मदद करना हराम है। इसलिए देरी करना सबसे सही रहेगा।” यह विचार कर हुमायूँ ग्वालियर में ही रुक गया और आगे नहीं सरका।

इधर बहादुर शाह ने जब चित्तोड़ को घेर लिया। रानी ने पूरी वीरता से उसका सामना किया। हुमायूँ का कोई नामोनिशान नहीं था। अंत में जौहर करने का निर्णय हुआ। किले के दरवाजे खोल दिए गए। केसरिया बाना पहनकर पुरुष युद्ध के लिए उतर गए। पीछे से राजपूत औरतें जौहर की आग में कूद गई। रानी कर्णावती 13000 स्त्रियों के साथ जौहर में कूद गई। 3000 छोटे बच्चों को कुँए और खाई में फेंक दिया गया। ताकि वे मुसलमानों के हाथ न लगे। कुल मिलकर 32000 निर्दोष लोगों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा।

बहादुर शाह किले में लूटपाट कर वापिस चला गया। हुमायूँ चित्तोड़ आया। मगर पुरे एक वर्ष के बाद आया। परन्तु किसलिए आया ? अपने वार्षिक लगान को इकठ्ठा करने आया। ध्यान दीजिये यही हुमायूँ जब शेरशाह सूरी के डर से रेगिस्तान की धूल छानता फिर रहा था। तब उमरकोट सिंध के हिन्दू राजपूत राणा ने हुमायूँ को आश्रय दिया था। यही उमरकोट में अकबर का जन्म हुआ था। एक काफ़िर का आश्रय लेते हुमायूँ को कभी इस्लाम याद नहीं आया और धिक्कार है ऐसे राणा पर जिसने अपने हिन्दू राजपूत रियासत चित्तोड़ से दगा करने वाले हुमायूँ को आश्रय दिया। अगर हुमायूँ यही रेगिस्तान में मर जाता। तो भारत से मुग़लों का अंत तभी हो जाता। और ना आगे चलकर अकबर से लेकर औरंगज़ेब के अत्याचार हिन्दुओं को सहने पड़ते।

इरफ़ान हबीब, रोमिला थापर सरीखे इतिहासकारों ने इतिहास का केवल विकृतिकरण ही नहीं किया अपितु उसका पूरा बलात्कार ही कर दिया। हुमायूँ द्वारा इस्लाम के नाम पर की गई दगाबाजी को भाईचारे और रक्षाबंधन का नाम दे दिया। हमारे पाठ्यक्रम में पढ़ा पढ़ा कर हिन्दू बच्चों को इतना भ्रमित किया गया कि उन्हें कभी सत्य का ज्ञान ही न हो। इसीलिए आज हिन्दुओं के बच्चे दिल्ली में हुमायूँ के मकबरे के दर्शन करने जाते हैं। जहाँ पर गाइड उन्हें हुमायूँ को भाईचारे के प्रतीक के रूप में बताते हैं।

इस लेख को आज रक्षाबंधन के दिन इतना फैलाये कि इन सेक्युलर घोटालेबाजों तक यह अवश्य पहुंच जाये।

रक्षा बंधन का पवित्र इतिहास

रक्षाबंधन का उल्लेख महाभारत के समय से ही मिलना शुरू हो गया था। यह उल्लेख मिलता है द्रौपदी और कृष्ण के बीच। श्री कृष्ण की ऊँगली से खून निकल रहा था। तभी द्रौपदी ने अपनी साड़ी का छोटा सा हिस्सा निकाल कर कृष्ण की कलाई में बाँध दिया। बदले में कृष्ण ने भी वादा किया कि वह हमेशा द्रौपदी की रक्षा करेंगे। यही कारण था कि जब कौरवों और पांडवों की भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था। तब श्री कृष्ण ने द्रौपदी की मदद की।

रक्षाबंधन का दूसरा बड़ा उल्लेख मिलता है भविष्य पुराण में। जिसके मुताबिक़ इंद्र देव को शुचि (इंद्राणी) ने राखी बाँधी थी। इसके अलावा विष्णु पुराण में उल्लेख मिलता है कि राजा बाली को लक्ष्मी ने राखी बाँधी थी। इस त्योहार से जुड़ी यमराज और यमुना की कहानी भी काफी प्रचलित है। इस तरह की न जाने कितनी और कहानियाँ हैं जो रक्षाबंधन का प्राचीन इतिहास साबित करती हैं।

🚩श्रावण/ सावन माह की पूर्णिमा के दिन “श्रावणी उपाक्रम” किया जाता है। इस दिन सनातन धर्म के लोग अपना यज्ञोपवीत (जनेऊ) बदलते हैं। श्रावणी, शरीर को शुद्ध करने की प्रक्रिया भी कही जाती है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षिका (रक्षा सूत्र) बांधती हैं। यहाँ तक कि आम लोग अपने प्रियजनों को भी सूत्र बाँधते हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करते हैं।

इन बातों के अलावा रक्षा बंधन से संबंधित एक संस्कृत का श्लोक है —-
येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वां मनुबध्नामि, रक्षंमाचल माचल।।

इसका अर्थ यह है कि रक्षासूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहित अपने यजमान से कहता है ——

जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बँधन में बाँधे गए थे अर्थात धर्म में प्रयुक्त किए गए थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बाँधता हूँ, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूँ। इसके बाद पुरोहित रक्षासूत्र से कहता है कि, हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।

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By Ashwani Hindu

अशवनी हिन्दू (शर्मा) मुख्य सेवादार "सनातन धर्म रक्षा मंच" एवं ब्यूरो चीफ "सनातन समाचार"। जीवन का लक्ष्य: केवल और केवल सनातन/हिंदुत्व के लिए हर तरह से प्रयास करना और हिंदुत्व को समर्पित योद्धाओं को अपने अभियान से जोड़ना या उनसे जुड़ जाना🙏

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