किसी के धर्म मे केवल एक ही शादी होनी चाहिए और किन्हीं के मजहब में बाप और बेटे एक साथ शादी भी कर सकते हैं।
बहरहाल आस्था अपनी अपनी और मजहब अपना अपना और कोई अकीदा तब ही सही माना जाता है जब मौलवी साहब खुद मुबारबकबाद देने आ जाएं तथा आये सभी मेहमानों को अधिक शादियां करने की प्रेरणा दें।
https://youtu.be/jwI_bOGT5ok
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मात्र एक शब्द; निंदनीय