हिंदुओं की चीखती औरतें, कटते हिन्दू, भागते हिन्दू, शायद कुछ हिंदुओं को ही याद होगा ?

यह हिंदुओं का कोई स्वभाव है या दुर्भाग्य है या यह कोई विडंबना है कि हिंदू अपने साथ हुए जुल्मों को हमेशा भूल जाते हैं। और इस कदर भूल जाते हैं की अपने पर हुए जुल्मों से सीख लेकर अपने बचाव के लिए आगे की कोई भी योजना नहीं बनाते हैं। हममें से शायद कुछ ही हिंदुओं को याद होगी 19 जनवरी 1990 की वह सुबह जिस दिन कश्मीरी हिंदुओं को अपने घरों से भागना पड़ा था, और सरकारें मुस्लिम तुष्टिकरण में आतंक का साथ दे रहीं थीं। उस दिन कश्मीर में माहौल पहले से कहीं ज़्यादा सर्दी थी। सभी मस्जिदों से उस रोज अज़ान के साथ-साथ कुछ और नारे भी गूँज रहे थे।

यहाँ क्‍या चलेगा, निजाम-ए-मुस्तफा’, ‘कश्‍मीर में अगर रहना है, अल्‍लाह-हू-अकबर कहना है’ और ‘असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान’ मतलब हमें पाकिस्‍तान चाहिए और हिंदू औरतें भी मगर अपने मर्दों के बिना।

यह संदेश किसी और के लिए नहीं बल्कि कश्‍मीर में रहने वाले हिंदुओं के लिए था। ऐसी धमकियाँ उन्‍हें पिछले कई महीनों से मिल रही थीं। आज 32 साल बीत जाने के बाद भी उन हिंदुओं के घाव अभी तक रिस रहे हैं, जिन्होंने उस समय अपने घर की बहन बेटियों को खोया, अपने बंधु बांधव की लाशें देखीं और वह बेघर होने को विवश हो गए। उसने अपने बसे बसाए घर बार, खेत खलिहान, कारोबार छोड़कर कश्मीर से भागे हुए अमीर हिंदू आज भी शरणार्थी कैंपों में घुटन भरी जिंदगी व्यतीत करने को विवश हैं।

1990 में घाटी से हिंदुओं को जिस बुरी तरह से मारपीट कर लूट कर और उनकी बहन बेटियों के साथ सामूहिक बलात्कार करके भगाया गया था वह किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। सारे देश में जहां कहीं भी किसी के ऊपर अत्याचार होता है उसके बारे में बहुत चर्चाएं होती हैं जो होनी भी चाहिए, परंतु क्या कारण है कि कश्मीर से लूट पीटकर भगा दिए गए हिंदुओं की चर्चा कहीं क्यों नहीं होती ?

32 साल पहले वहां से अपने परिजनों के साथ भागे हुए बच्चे जो अब बड़े हो चुके हैं, वह अब भी अपने बचपन की उन क्रूर घटनाओं को याद करके कांप उठते है। उन खूनी भयंकर घटनाओं को याद करते हुए आज सोशल मीडिया पर मशहूर अभिनेता अनुपम खेर ने कश्मीरी हिंदुओं के पलायन को याद करते हुए एक कविता के माध्यम से देश को एक बार फिर उस त्रासदी की याद दिलाई है जो लाखों कश्मीरी हिंदुओं के दिलों में आज भी एक नासूर की तरह चुभता है।

कविता की पंक्तियाँ ‘कैसे भूल जाऊँ मैं…’ आपके सामने 1990 का वह तस्वीर खींचती हैं जब आतंकियों ने कश्मीरी हिंदुओं पंडितों को अपने ही घर, जमीन, जायदाद सब छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया था। हिंदू नरसंहार दिवस को याद करते अपनी कविता में वह कहते हैं, “कैसे भूल जाऊँ मैं… आँखों में डर की तस्वीर.. माथे पर तनाव की लकीर…बोलो कैसे भूल जाऊँ मैं…”

घाटी में आतंकवाद की पहली वारदात 14 सितंबर 1989 में हुई, जब वरिष्ठ वकील और भारतीय जनता पार्टी के नेता टीका राम टपलू की दिनदहाड़े श्रीनगर में उनके घर के बाहर ही गोली मारकर हत्या कर दी गई। हिंदुओं के घरों का नामोनिशान तक मिटा दिया गया। उस रात घाटी से हिंदुओं का पहला जत्‍था भागा था। मार्च और अप्रैल आते-आते हजारों परिवार घाटी से भागकर भारत के अन्‍य इलाकों में शरण लेने को मजबूर हुए। अगले कुछ महीनों में खाली पड़े घरों को जलाकर खाक कर दिया। जो घर मुस्लिम आबादी के पास थे, उन्‍हें बड़ी सावधानी से बर्बाद कर दिया गया। सैकड़ों मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था।

कश्‍मीरी पंडित संघर्ष समिति के अनुसार, जनवरी 1990 में घाटी के भीतर 75,343 परिवार थे। 1990 और 1992 के बीच 70,000 से ज्‍यादा परिवारों ने घाटी को छोड़ दिया। एक अनुमान है कि आतंकियों ने 1990 से 2011 के बीच सैकड़ों कश्‍मीरी हिंदुओं पंडितों की हत्‍या की। वास्तव में कश्मीरी हिंदुओं पंडितों के खिलाफ आतंकवाद का ये खूनी खेल 1986-87 में ही शुरू हो गया था। जब सैय्यद सलाहुद्दीन और यासीन मलिक जैसे आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन कॉन्ग्रेस गठबंधन की सरकार ने कश्मीरी हिंदुओं पंडितों को यूँ ही आतंकियों के हाथों मरने के लिए छोड़ दिया था।

फिर जब फारूक अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने। उसके बाद कट्टरपंथियों ने कश्मीर की आजादी की माँग और तेज करते हुए हिंदुओं का नरसंहार शुरू कर दिया, लेकिन जम्मू-कश्मीर की फारुक अब्दुल्ला सरकार मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगे मूक दर्शक बनी रही। और फिर लगातार हिंदुओं की हत्याएं होने का सिलसिला जारी रहा और आखिर 19 जनवरी 1990 को तो हिंदुओं पर मानों कहर ही टूट पड़ा। ना जाने कितने परिवार बर्बाद हो गए। वहां से भाग कर आए हिंदुओं को इतना दर्द अपने भागने का नहीं है जितना दर्द उनको अपनी बहन बेटियों की इज्जत लूटे जाने का दर्द है।

रोते हुए रोती कविता

बता दें कि हिंदुओं का यह भागने का सिलसिला अभी तक रुका नहीं है। अब भी देश के किसी ना किसी हिस्से से हिंदुओं के भागने की खबरें आती ही रहती हैं। फिर वह चाहे कैराना हो मेवात हो पश्चिमी बंगाल हो अथवा देश की राजधानी दिल्ली भी क्यों ना हो। अब बड़ा सवाल यह उठता है कि हिंदू आखिर कब तक भागते रहेंगे ? कहां तक भागते रहेंगे ? क्योंकि यह सत्य है की यह भारत ही हिंदुओं की आखिरी भूमि है। इसके सिवा तो हिंदुओं का कोई देश है भी नहीं दुनिया में, और अब अगर यह भागने का सिलसिला यूं ही चलता रहा तो आखिर भागकर जाने के लिए केवल और केवल हिंद महासागर ही बचा है हिंदुओं के लिए।

बतादें की आज मध्यप्रदेश के सुराना गांव से हिन्दू भाग रहे हैं।

Have you forgotten? Yes, you must have forgotten the terrible Hindu massacre, because you are a Hindu – January 19

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By Ashwani Hindu

अशवनी हिन्दू (शर्मा) मुख्य सेवादार "सनातन धर्म रक्षा मंच" एवं ब्यूरो चीफ "सनातन समाचार"। जीवन का लक्ष्य: केवल और केवल सनातन/हिंदुत्व के लिए हर तरह से प्रयास करना और हिंदुत्व को समर्पित योद्धाओं को अपने अभियान से जोड़ना या उनसे जुड़ जाना🙏

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