आज 9 मई: प्रबल धर्मरक्षक महाराणा प्रताप जी की जयंती आइए जाने उनके बारे में


Today May 9: The birth anniversary of the ardent protector of religion Maharana Pratap ji, let’s know about him.”

घास की रोटियां खा लीं किंतु सनातन धर्म ध्वजा को झुकने नहीं दिया।

सनातन 🚩समाचार🌎 आज जयंती है उस महान धर्म रक्षक की जिसने धर्म ध्वजा को कभी झुकने नहीं दिया, और ऐसे अमर बलिदानी बन गए जिनका स्मरण आते ही आज भी हिंदुओं के सर श्रद्धा से झुक जाते हैं और भुजाएं फड़क उठती हैं।

आज हम याद कर रहे हैं

राजस्थान में जन्मे उन महान महाराणा प्रताप जी को जो हिंदुत्व के प्रतीक थे। जिनसे आज भी धर्म योद्धा प्रेरणा लेते हैं। आपके जीवन काल से हमें पता चलता है कि चाहे कैसी भी विकट स्थिति क्यों ना हो और दुश्मन कितना भी मजबूत क्यों ना हो, अगर हृदय में धर्म के प्रति प्रेम धड़क रहा है तो कुछ भी असंभव नहीं है।

आज 9 मई 1540 ईस्वी के दिन ही राजस्थान के कुंभलगढ़ के दुर्ग में महाराणा प्रताप जी का जन्म हुआ था। हिंदू परंपरा से महान महाराणा प्रताप जी की जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। आपके पिताजी का नाम महाराणा उदय सिंह जी और माता जी का नाम जयवंत कवर था। आप महान राणा सांगा जी के पौत्र थे।

राजपूताना राज्यों में मेवाड़ का अपना एक विशिष्ट स्थान है। जिसमें इतिहास के गौरव बप्पा रावल, ना राणा हम्मीर खुमान प्रथम महाराणा सांगा, महाराणा कुंभा, उदयसिंह और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी ने जन्म लिया है। महाराणा प्रताप जी को राजपूताना वीरता शिष्टता और दृढ़ता का स्तंभ माना जाता है। आप मुगलों के खिलाफ युद्ध लड़ने वाले वो अकेले योद्धा थे जिन्होंने स्वयं के लाभ के लिए कभी भी मुस्लिम आक्रांताओं से हार नहीं मानी। मेवाड़ की शौर्य भूमि धन्य है जहां धर्मयोधा महाराणा प्रताप जी का जन्म हुआ था। आपका नाम इतिहास में अजर अमर रहेगा।

महाराणा प्रताप जी ने धर्म और स्वाधीनता के लिए अपना बलिदान दिया।

सन 1575 के हल्दीघाटी युद्ध में लगभग 20000 हिंदुओं को साथ लेकर महाराणा जी ने मुगल अक्रांता ओं की 80000 संख्या की सेना का मुकाबला किया। बताने की आवश्यकता नहीं है कि महाराणा प्रताप जी के पास उनका बहुत बढ़िया घोड़ा चेतक था, जो युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ था। मुगल आक्रांताओ से निरंतर लड़ते हुए भामाशाह नाम से प्रसिद्ध उनके साथी ने उनकी मदद की। जिससे उन्होंने दोबारा युद्ध लड़ा और प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में अपना राज्य पुनः स्थापित कर लिया।

हल्दीघाटी का युद्ध अय्याश और क्रूर हत्यारे अकबर तथा महाराणा प्रताप के बीच 18 जून 1576 ईस्वी को लड़ा गया था। उस युद्ध में ना शैतान अकबर जीत सका और ना ही राणा जी हारे। मुगलों के पास सैनिक अधिक थे तो इधर महाराणा जी के पास धर्म के लिए लड़ने वालों की कमी नहीं थी। वास्तव में मुगलों की ताकत हमेशा से वह हिंदू ही बने रहे जो लालच के चलते हिंदुओं से गद्दारी कर रहे थे।

बताने की आवश्यकता नहीं है कि महाराणा प्रताप जी का भाला 81 किलो वजन का था और उनकी छाती का कवच 72 किलो का था उनका भाला कवच ढाल और दो तलवारों का कुल वजन 208 किलो था। जो अपने आप में अचंभित करने वाला है। युद्ध में जब मुगल सेना उनके पीछे पड़ी थी तो उनके घोड़े चेतक ने महाराणा प्रताप जी को अपनी पीठ पर बैठा कर कई फीट लंबे नाले को पार किया था। हिंदू को वीरता स्वाभिमान और धर्म के लिए लड़ने की सीख देकर 19 जनवरी 1597 को महावीर महाराणा प्रताप जी अमरत्व को प्राप्त हो गए। आज भी चित्तौड़ की हल्दीघाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है

आज वीरता और शौर्य की पराकाष्ठा अमर योद्धा महाराणा प्रताप जी को उनकी जयंती पर सनातन 🚩समाचार🌎 सहित प्रत्येक सनातनी बार-बार नमन और वंदन करता हैl

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