प्रिय आत्म जनों सनातन धर्म के बारे में कुछ भी लिखना या बोलना ठीक वैसा ही है जैसा सूर्य को दिया दिखाना, परंतु क्योंकि हम सनातन को मानने वाले हैं इसलिए हमारा यह परम कर्तव्य भी है कि हम अपने इस महान धर्म के बारे में अधिक से अधिक जानने का प्रयास करते रहें और और इस पवित्र जानकारी को अपने अन्य सनातनीयों तक भी पहुंचाने के प्रयास करते रहें ताकि हम और हमारी आने वाली पीढ़ियां अपनी जड़ों से जुड़े रहें। तो आइए जानने का प्रयास करते हैं अपने महान सत्य सनातन धर्म के बारे में🙏
🌍 चारयुग और_ उनकी_विशेषताएं 🌍
इनके बारे में हम सभी को अवश्य जानना चाहिए। ऐसी दिव्य जानकारियां आपको किसी भी कोर्स में नहीं पढ़ाई जाती हैं।
युग शब्द का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि। जैसे सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग आदि। आज हम चारों युगों का वर्णन समझेंगे। युग वर्णन से तात्पर्य है कि उस युग में किस प्रकार से व्यक्ति का जीवन, आयु, ऊँचाई, एवं उनमें होने वाले अवतारों के बारे में विस्तार से परिचय देना। प्रत्येक युग के वर्ष प्रमाण और उनकी विस्तृत जानकारी कुछ इस तरह है –
🌹सत्ययुग- यह प्रथम युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार हैं –
सत्ययुग का तीर्थ – पुष्कर है।
इस युग में कोई भी पाप नहीं होता है, अर्थात पाप की मात्र 0% है।
इस युग में पुण्य की मात्रा – 20 विश्वा अर्थात् (100%) होती है।
इस युग के अवतार – मत्स्य जी, कूर्म जी, वाराह जी, नृसिंह जी (सभी अमानवीय अवतार हुए) हैं ! अवतार होने का कारण – शंखासुर का वध एंव वेदों का उद्धार, पृथ्वी का भार हरण, हरिण्याक्ष दैत्य का वध, हिरण्यकश्यपु का वध एवं भक्त प्रह्लाद को सुख देने के लिए।
इस युग की मुद्रा – रत्नमय है ।
इस युग के पात्र – स्वर्ण के है ।
काल – 17,28000 वर्ष
मनुष्य की लंबाई – 32 फ़ीट
आयु – 1 लाख वर्ष
🌳2) त्रेतायुग – यह द्वितीय युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है –🌳
त्रेतायुग का तीर्थ – नैमिषारण्य है ।
इस युग में पाप की मात्रा – 5 विश्वा अर्थात् (25%) होती है ।
इस युग में पुण्य की मात्रा – 15 विश्वा अर्थात् (75%) होती है ।
इस युग के अवतार – वामन जी, परशुराम जी, भगवान श्री राम (राजा दशरथ जी के घर)
अवतार होने के कारण – बलि का उद्धार कर पाताल भेजा, दुराचारी क्षत्रियों का संहार, रावण-वध एवं देवों को बन्धनमुक्त करने के लिए ।
इस युग की मुद्रा – स्वर्ण है ।
इस युग के पात्र – चाँदी के है ।
काल – 12,96,000 वर्ष
मनुष्य की लंबाई – 21 फ़ीट
आयु – 10,000 वर्ष
🌞3) द्वापरयुग – यह तृतीय युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है –🌞
द्वापरयुग का तीर्थ – कुरुक्षेत्र है ।
इस युग में पाप की मात्रा – 10 विश्वा अर्थात् (50%) होती है ।
इस युग में पुण्य की मात्रा – 10 विश्वा अर्थात् (50%) होती है ।
इस युग के अवतार – भगवान श्री कृष्ण, (देवकी के गर्भ से एंव नंद के घर पालन-पोषण)।
अवतार होने के कारण – कंसादि दुष्टो का संहार एंव गोपों की भलाई, पृथ्वी को अधर्म रहित करने के लिए ।
इस युग की मुद्रा – चाँदी है ।
इस युग के पात्र – ताम्र के हैं ।
काल – 8,64,000 वर्ष
मनुष्य की लंबाई – 11 फ़ीट
आयु – 1,000 वर्ष
🌻4) कलियुग – यह चतुर्थ युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है –🌻
कलियुग का तीर्थ – श्री गंगा जी है ।
इस युग में पाप की मात्रा – 15 विश्वा अर्थात् (75%) होती है ।
इस युग में पुण्य की मात्रा – 5 विश्वा अर्थात् (25%) होती है ।
इस युग के अवतार – कल्कि जी (ब्राह्मण विष्णु यश के घर) ।
अवतार होने के कारण – मनुष्य जाति के उद्धार अधर्मियों का विनाश एंव धर्म कि रक्षा के लिए।
इस युग की मुद्रा – लोहा है।
इस युग के पात्र – मिट्टी के है।
काल – 4,32,000 वर्ष
मनुष्य की लंबाई – 5.5 फ़ीट
आयु – 60-100 वर्ष.
आदरणीय स्वजनों यह जानकारी सनातन 🚩धर्म के अथाह समुद्र की एक बूंद मात्र भी नहीं है, बस यह केवल एक बहुत छोटा सा प्रयास है उस विशाल सत्य सनातन धर्म में झांकने का और अपना कल्याण करने का🙏
हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ
जय जय। बहुत ही उत्तम और उपयोगी जानकारी। धन्यवाद 🙏
कृतार्थ हुए आपका समर्थन पा कर।