“महिला स्वतंत्रता” यह अति आवश्यक भी है और यह कोई नई बात भी नहीं है। सनातन धर्म में युगो युगो से महिलाओं को पूरी स्वतंत्रता रही है।
भगवान श्री राम जी के समय – हम सभी जानते हैं की उस समय महिलाओं को अपना वर चुनने की पूरी स्वतंत्रता थी। हिंदू इतिहास में ऐसे अनेकों प्रमाण हैं जिनमें महिलाएं पूरी तरह स्वतंत्र और आत्मनिर्भर दिखाई देती हैं, बल्कि समाज की रक्षा के लिए लड़ने वाली महिलाओं का भी वर्णन हमारे स्वर्णिम इतिहास में है। तो ऐसा क्या हो गया जो आज महिला स्वतंत्रता की बातें की जा रही हैं ?
वास्तव में यह बातें उन तथाकथित अच्छी महिलाओं द्वारा शुरू की गई हैं जो महिला स्वतंत्रता के नाम पर, स्वतंत्रता का ढिंढोरा पीट पीटकर अपने शरीर का प्रदर्शन करके धन कमाना चाहती हैं। स्वभाविक है कि जब कोई नारी बेहद अश्लील तरीके से सार्वजनिक देह प्रदर्शन करती है तो उसे भारतीय जनमानस सहज में स्वीकार नहीं करता है, इसके बाद ज्यों ज्यों कुछ ऐसी धन लोलुप स्त्रियों द्वारा महिला स्वतंत्रता के नारे लगा लगा कर देह प्रदर्शन होने लगा त्यों त्यों एक बहुत बड़ा सभ्य समाज भी इस तथा कथित स्वतंत्रता के नाम पर हो रही अश्लीलता का विरोध भी करने लगा। अब आवश्यकता इस बात की है की इस बात पर चिंतन अवश्य ही किया जाना चाहिए की महिला स्वतंत्रता आखिरी है क्या ? एक लाइन बहुत जबरदस्त चल रही है – हम अपने कपड़े क्यों बदलें, तुम अपनी नजर बदलो। तो आइए थोड़ी सी चर्चा इस तथाकथित महिला स्वतंत्रता के बारे में भी करते हैं ……
नारी स्वतंत्रता पर सच्चाई जाने, समझें ???
सोशल मीडिया से प्राप्त एक लेख :
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एक दिन मोहल्ले में किसी ख़ास अवसर पर महिला सभा का आयोजन किया गया, सभा स्थल पर महिलाओं की संख्या अधिक और पुरुषों की कम थी..!!
मंच पर तकरीबन पच्चीस वर्षीय खुबसूरत युवती, आधुनिक वस्त्रों से सुसज्जित, माइक थामें कोस रही थी पुरुष समाज को..!!
वही पुराना आलाप…. कम और छोटे कपड़ों को जायज, और कुछ भी पहनने की स्वतंत्रता का बचाव करते हुए, पुरुषों की गन्दी सोच और खोटी नीयत का दोष बतला रही थी.!!
तभी अचानक सभा स्थल से… तीस बत्तीस वर्षीय सभ्य, शालीन और आकर्षक से दिखते नवयुवक ने खड़े होकर अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति मांगी..!!
अनुमति स्वीकार कर माइक उसके हाथों मे सौप दिया गया …. हाथों में माइक आते ही उसने बोलना शुरु किया..!!
“माताओं, बहनों और भाइयों, मैं आप सबको नही जानता और आप सभी मुझे नहीं जानते कि, आखिर मैं कैसा इंसान हूं..??
लेकिन पहनावे और शक्ल सूरत से मैं आपको कैसा लगता हूँ बदमाश या शरीफ..??
सभास्थल से कई आवाजें गूंज उठीं… पहनावे और बातचीत से तो आप शरीफ लग रहे हो… शरीफ लग रहे हो… शरीफ लग रहे हो….
बस यही सुनकर, अचानक ही उसने अजीबोगरीब हरकत कर डाली… सिर्फ हाफ पैंट टाइप की अपनी अंडरवियर छोड़ कर के बाक़ी सारे कपड़े मंच पर ही उतार दिये..!!
ये देख कर …. पूरा सभा स्थल आक्रोश से गूंज उठा, मारो-मारो गुंडा है, बदमाश है, बेशर्म है, शर्म नाम की चीज नहीं है इसमें…. मां बहन का लिहाज नहीं है इसको, नीच इंसान है, ये छोड़ना मत इसको….
ये आक्रोशित शोर सुनकर… अचानक वो माइक पर गरज उठा…
“रुको… पहले मेरी बात सुन लो, फिर मार भी लेना , चाहे तो जिंदा जला भी देना मुझको..!!
अभी अभी तो….ये बहन जी कम कपड़े , तंग और बदन नुमाया छोटे-छोटे कपड़ों की पक्ष के साथ साथ स्वतंत्रता की दुहाई देकर गुहार लगाकर…”नीयत और सोच में खोट” बतला रही थी…!!
तब तो आप सभी तालियां बजा-बजाकर सहमति जतला रहे थे..फिर मैंने क्या किया है..??
सिर्फ कपड़ों की स्वतंत्रता ही तो दिखलायी है..!!
“नीयत और सोच” की खोट तो नहीं ना और फिर मैने तो, आप लोगों को… मां बहन और भाई भी कहकर ही संबोधित किया था..फिर मेरे अर्द्ध नग्न होते ही…. आप में से किसी को भी मुझमें “भाई और बेटा” क्यों नहीं नजर आया..??
मेरी नीयत में आप लोगों को खोट कैसे नजर आ गया..??
मुझमें आपको सिर्फ “मर्द” ही क्यों नजर आया? भाई, बेटा, दोस्त क्यों नहीं नजर आया? आप में से तो किसी की “सोच और नीयत” भी खोटी नहीं थी… फिर ऐसा क्यों?? “
सच तो यही है कि….. झूठ बोलते हैं लोग कि…
“वेशभूषा” और “पहनावे” से कोई फर्क नहीं पड़ता
हकीकत तो यही है कि मानवीय स्वभाव है कि किसी को सरेआम बिना “आवरण” के देख लें तो कामुकता जागती है मन में…
रूप, रस, शब्द, गन्ध, स्पर्श ये बहुत प्रभावशाली कारक हैं इनके प्रभाव से “विस्वामित्र” जैसे मुनि के मस्तिष्क में विकार पैदा हो गया था..जबकि उन्होंने सिर्फ रूप कारक के दर्शन किये..आम मनुष्यों की विसात कहाँ..??
दुर्गा शप्तशती के देव्या कवच में श्लोक 38 में भगवती से इन्हीं कारकों से रक्षा करने की प्रार्थना की गई है..
“रसेरुपेचगन्धेचशब्देस्पर्शेचयोगिनी।
सत्त्वंरजस्तमश्चैवरक्षेन्नारायणी_सदा।।”
रस रूप गंध शब्द स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करें तथा सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण की रक्षा नारायणी देवी करें.!!
अब बताइए, हम भारतीय हिन्दु महिलाओं को “हिन्दु संस्कार” में रहने को समझाएं तो स्त्रियों की कौन-सी “स्वतंत्रता” छीन रहे हैं..??
सोशल मीडिया पर अर्ध-नग्न होकर नाचने वाली 90% कन्याएँ-महिलाएँ..हिंदू हैं इसलिएआँखे खोलिए…संभालिए अपने आप को और अपने समाज को, क्योंकि भारतीय समाज और संस्कृति का आधार “नारीशक्ति” है, और धर्म विरोधी, अधर्मी, चांडाल (बॉलीवुड, वामपंथी,मिशनरी) ये हमारे समाज के आधार को तोड़ने का षड्यंत्र कर रहे हैं..!!
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अति तर्कसंगत लेख।
आपकी नजर ठीक है आदरणीय जी।