विवाह सनातन धर्म का एक बहुत बड़ा और पवित्र संस्कार है।
विवाह संस्कार का सनातनी परम्परा में बहुत ज्यादा महत्व है। ये एक सरेष्ठ और ओवित्र संस्कार है परन्तु आजकल कुछ तथा कथित आधुनिक लोग अपने धन के नशे में चूर हक कर इनका घोर अपमान कर रहे हैं, जोकि धर्मानुसार तो पाप है ही बल्कि कानून के अनुसार भी एक गम्भी अपराध है। अन्यथा सभी वेद सम्मत विवाह ही करते हैं। लंबी काल परंपरा और विदेशी धर्म और संस्कृति के मिश्रण के कारण हिन्दू विवाह संस्कार में विकृति आ गई है।
विवाह को हिन्दुओं के प्रमुख 16 संस्कारों में से एक माना जाता है जो कि बहुत ही पवित्र कर्म होता है। इसी संस्कार के बाद व्यक्ति गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है। यदि यह संस्कार उचित रीति से नहीं हुआ है तो यह महज एक समझौता ही होगा। आज विवाह वासना-प्रधान बनते चले जा रहे हैं। रंग, रूप एवं वेष-विन्यास के आकर्षण को पति-पत्नि के चुनाव में प्रधानता दी जाने लगी है। दूसरी ओर वर पक्ष की हैसियत, धन, सैलरी आदि देखी जाती है। यह प्रवृत्ति बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। लोगों की इसी सोच के कारण दाम्पत्य-जीवन और परिवार बिखरने लगे हैं। प्रेम विवाह और लीव इन रिलेशन पनपने लगे हैं जिनका परिणाम भी बुरा ही सिद्ध होता है। विवाह संस्कार अब एक समझौता, बंधन और वैध व्याभिचार ही रह गया है, जिसका परिणाम तलाक, हत्या या आत्महत्या के रूप में सामने देखने को मिलता है। अन्यथा वर के माता पिता को अपने ही घर से बेदखल किए जाने के किस्से भी अब आम हो चले हैं।
हिन्दू धर्मानुसार विवाह एक ऐसा कर्म या संस्कार है जिसे बहुत ही सोच-समझ और समझदारी से किए जाने की आवश्यकता है। दूर-दूर तक रिश्तों की छानबिन किए जाने की जरूरत है। जब दोनों ही पक्ष सभी तरह से संतुष्ट हो जाते हैं तभी इस विवाह को किए जाने के लिए शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। इसके बाद वैदिक पंडितों के माध्यम से विशेष व्यवस्था, देवी पूजा, वर वरण तिलक, हरिद्रालेप, द्वार पूजा, मंगलाष्टकं, हस्तपीतकरण, मर्यादाकरण, पाणिग्रहण, ग्रंथिबन्धन, प्रतिज्ञाएं, प्रायश्चित, शिलारोहण, सप्तपदी, शपथ आश्वासन आदि रीतियों को पूर्ण किया जाता है।
विवाह को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है। विवाह = वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है – विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी क बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है, जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे ले कर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।
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हिंदू मान्यताओं के अनुसार मानव जीवन को चार आश्रमों (ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, सन्यास आश्रम तथा वानप्रस्थ आश्रम) में विभक्त किया गया है और गृहस्थ आश्रम के लिये पाणिग्रहण संस्कार अर्थात् विवाह नितांत आवश्यक है। वैदिक संस्कृति में 16 संस्कारों के बगैर इंसान का जीवन सफल नहीं माना जाता। विवाह शब्द में ‘वि’ का मतलब विशेष से है और ‘वाह’ का अर्थ वहन करना है। यानी उत्तरदायित्व को विशेष रूप से वहन करना ही विवाह होता है।
अब ऐसे पवित्र और सरेष्ठ विवाह सँस्कार में भी अगर कोई कचरा मिला देता है तो निश्चित है ये महापाप है, और कानून के अनुसार दंडनीय अपराध है।
Some Hindus have got worms in their mind, do you also do such things?