“Gyanvapi” Muslims spit and rinse, Hindus say Shivling, don’t do this, know about Gyanvapi.”
मुसलमान इसे ज्ञानवापी मस्जिद कहते हैं जबकि नंदी जी इसकी और मुंह किए बैठे हैं।
सनातन🚩समाचार🌍 मेवात के साथ साथ आजकल ज्ञानवापी का मुद्दा भी जोरों पर है क्योंकि ज्ञानवापी मंदिर के लिए हिंदू बहुत वर्षों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं जिसके चलते अब अदालत के आदेश से ASI के द्वारा इस मंदिर/मस्जिद का बारीकी से सर्वेक्षण किया जा रहा है। ऐसा सर्वेक्षण पहले भी हो चुका है। हिंदुओं को पूरी आशा है की अब कानूनी तौर पर ये स्थान मंदिर घोषित हो जायेगा और हम उस शिवलिंग पर जलाभिषेक कर सकेंगे जिसे मुसलमान फव्वारा बता रहे हैं और उस पर कुल्ले कर रहे हैं।
आइए जानते हैं ज्ञानवापी के बारे में ………
पवित्र पुराणों के अनुसार ज्ञानवापी को लेकर सदैव मान्यता रही है कि तथाकथित मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से स्वयं का अभिषेक करने के लिए इस कुएं को बनाया था। मान्यता है की इस कुएं का जल बहुत ही पवित्र है। ज्ञानवापी का जल काशी विश्वनाथ को चढ़ाया जाता था, जिसकी ओर मुख कर नन्दी स्वयं विराजमान थे, और आज भी हैं।
शिव पुराण के अनुसार वर्तमान में ज्ञानवापी में मिला यह वही स्थान है, जहां महादेव ने अविमुक्त शिवलिंग (काशी) को स्वयं स्थापित किया था। अविमुक्त वह स्थान जहां पुराणों की मान्यता के अनुसार महापातकियों को भी मुक्त कर मोक्ष देने वाला कहा गया है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अविमुक्तेश्वर शिवलिंग ही वह काशी नामक मणि है, जिसे सदाशिव ने अपने त्रिशूल से उतार कर मृत्यु लोक में स्थापित किया था।
ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्यों के अनुसार काशी वह देव स्थान है, जो प्रलय में भी सुरक्षित होगी और शिवपुराण कथा के अनुसार काशी को स्वयं विश्वनाथ शिव उसी क्षण अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे। काशी जी की महिमा तो कैलाशपति बाबा विश्वनाथ की स्वयं की नगरी के रूप में काल दर काल हम सुनते आये हैं और सुनते रहेंगे। काशी खंड में परिकल्पित एतिहासिक साक्ष्य के अनुसार, अविमुक्तेश्वर शिवलिंग का भव्य मंदिर था और इस परिसर में विश्वेश्वर शिवलिंग भी मौजूद था।
भक्तों एवम् मान्यताओं के अनुसार दोनों शिवलिंग के दर्शन एक ही परिसर में किये जाते थे। परन्तु इस्लामिक आक्रमणों का काल विनाशक समय रहा, जिसके बाद अविमुक्तेश्वर शिवलिंग उस स्थान पर नहीं देखा जा सका। मुग़ल आक्रांताओं ने सनातन भारतीय संस्कृति के प्रतीकों को नष्ट करने का कार्य किया था।
मुगलों की नीति दुराग्रह से सनातन संस्कृति के प्रतीकों और स्थानों को ध्वस्त कर अपना आधिपत्य स्थापित करने की रही थी। सबसे पहले विश्वनाथ मंदिर को 1194 में मुहम्मद गोरी ने लूट कर ध्वस्त किया था। इसके बाद वर्ष 1669 में औरंगजेब ने एक बार फिर काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त किया। जनश्रुति के अनुसार औरंगजेब ने जब काशी जी का मंदिर तोड़ा तो उसके ढांचे के ऊपर मस्जिद बनवा दी। लेकिन मंदिर की दीवारें जस की तस बनी रह गईं। इसके बाद सन 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर जी ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था।
भारत के जन जन में काशी जी व्याप्त है। हर हिंदू परिवार जीवन में एक बार काशी में भगवान महादेव के दर्शन का अभिलाषी रहता है। ज्ञानवापी का उल्लेख हिंदू धर्म के पुराणों मे मिलता है, तो फिर ये मस्जिद के साथ नाम कैसे जुड़ गया ? वापी का अर्थ होता है तालाब। ज्ञानवापी का सम्पूर्ण अर्थ है ज्ञान का तालाब। काशी की छः वापियों का उल्लेख पुराणों मे भी मिलता है। पहली वापी: ज्येष्ठा वापी, जिसके बारे मे कहा जाता है की ये काशीपुरा मे थी जो अब लुप्त हो चुकी है।
दूसरी वापी: ज्ञानवापी, जो काशी विश्वनाथ मंदिर के उत्तर मे है। तीसरी वापी: कर्कोटक वापी, जो नागकुंआ के नाम से प्रसिद्ध है। चौथी वापी: भद्रवापी, जो भद्रकूप मोहल्ले मे है। पांचवीं वापी: शंखचूड़ा वापी, लुप्त हो चुकी है। छठी वापी: सिद्ध वापी, जो बाबू बाज़ार मे है और अब लुप्त हो चुकी है। अठारह (18) पुराणों मे से एक लिंग पुराण मे कहा गया है:
“देवस्य दक्षिणी भागे वापी तिष्ठति शोभना।
तस्यात वोदकं पीत्वा पुनर्जन्म ना विद्यते।”
इसका अर्थ है: प्राचीन विश्ववेश्वर मंदिर के दक्षिण भाग में जो वापी है, उसका जल पीने से जन्म मरण से मुक्ति मिलती है।
स्कंद पुराण मे कहा गया है:
“उपास्य संध्यां ज्ञानोदे यत्पापं काल लोपजं क्षणेन तद्पाकृत्य ज्ञानवान जायते नरः
अर्थात इसके जल से संध्यावंदन करने का भी बड़ा फल है, इससे भी ज्ञान उत्पन्न होता है, पापों से मुक्ति मिलती है।
स्कंद पुराण: –
योष्टमूर्तिर्महादेवः पुराणे परिपठ्यते ।।
तस्यैषांबुमयी मूर्तिर्ज्ञानदा ज्ञानवापिका।।
अर्थात ज्ञानवापी का जल भगवान शिव का ही स्वरूप है।
पवित्र पुराण जो ना जाने कितनी सदियों पहले लिखे गए, उनमें भी ज्ञानवापी को भगवान शिव का स्वरूप बताया गया है। सारे पुराण, कह रहे है की ज्ञानवापी हिंदुओं से जुड़ा हुआ है, किंतु आज 2023 मे आप सुन रहे हैं की ये ज्ञानवापी नाम की एक मस्जिद है। मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण से पहले काशी जी को अविमुक्त और भगवान शिव को अविमुक्तेश्वर कहा जाता था।
ये तथ्य है की इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा तलवार के बल पर ध्वस्त किए गए अपने तीर्थ स्थानों को हिंदू अदालतों में धक्के खा खा के पुनः प्राप्त करने के प्रयास कर रहे हैं, और दूसरी ओर बहुत जोर शोर से भाई चारे के राग गए जा रहे हैं।