“Shri Kedarnath temple is an unsolved puzzle, today even modern scientists are surprised to see this.
सनातन धर्म की जड़ें जितनी गहरी और प्राचीन हैं उतनी ही प्रमाणिक और वैज्ञानिक भी हैं।
सनातन 🚩समाचार🌎 श्री केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया था इसके बारे में कई तरह के विवरण हैं परंतु यह एक वास्तविकता है कि इस महान मंदिर का निर्माण जिस प्रकार से किया गया है, उसके बारे में आधुनिक वैज्ञानिक जितनी खोजें करते जा रहे हैं उतने ही हैरान होते जा रहे हैं।
21वीं शताब्दी में भी प्रतिकूल
आधुनिक वैज्ञानिकों का मत है कि श्री केदारनाथ मंदिर शायद सातवीं शताब्दी से पहले बनाया गया होगा। श्री केदारनाथ जी की भूमि आज 21वीं शताब्दी में भी बहुत प्रतिकूल है। यहां एक तरफ 22,000 फीट ऊंची श्री केदारनाथ पहाड़ है, दूसरी तरफ 21,600 फीट ऊंचा कराचकुंड और तीसरी तरफ 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड है। इन तीन पर्वतों से होकर बहने वाली पांच पवित्र नदियां हैं मंदाकिनी, मधुगंगा, चिरगंगा, सरस्वती और स्वरंदरी।
दिव्य कलाकृति
यह क्षेत्र “मंदाकिनी नदी” का एकमात्र जलसंग्रहण क्षेत्र है। यह मंदिर अपनेआप में एक कलाकृति है I उस समय कितना बड़ा असम्भव कार्य रहा होगा किसी ऐसी जगह पर ये कलाकृति जैसा मन्दिर बनाना जहां ठंड के मौसम में भारी मात्रा में बर्फ हो और बरसात के मौसम में बहुत तेज गति से पानी बहता हो। आज भी आप किसी वाहन से उस स्थान तक नही जा सकते हैंI ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में लगभग 2000 वर्ष पहले ऐसा अप्रतिम मंदिर कैसे बन सकता है ?
पत्थरों के जीवन की पहचान
आज उस क्षेत्र में सब कुछ हेलिकॉप्टर से ले जाया जाता है I JCB के बिना आज भी वहां एक भी ढांचा खड़ा नहीं होता है। परंतु यह मंदिर वहीं खड़ा है और न सिर्फ खड़ा है, बल्कि बहुत मजबूत है। वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि मंदिर निर्माण का समय में “हिम युग” जैसा ही रहा होगा। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी, देहरादून ने श्री केदारनाथ मंदिर की चट्टानों पर लिग्नोमैटिक डेटिंग का परीक्षण किया। यह “पत्थरों के जीवन” की पहचान करने के लिए किया जाता है। परीक्षण से पता चला कि मंदिर 14वीं सदी से लेकर 17वीं सदी के मध्य तक पूरी तरह से बर्फ में दब गया था। परंतु उससे मंदिर को कोई भी नुकसान नहीं हुआ।
मंदिर का पूरा ढांचा जरा भी प्रभावित नहीं हुआ
2013 में केदारनाथ जी में आई विनाशकारी बाढ़ को सभी ने देखा है। इस दौरान औसत से 375% अधिक बारिश हुई थी। उस बाढ़ में “5748 लोग” (सरकारी आंकड़े) मारे गए थे और 4200 गांवों को नुकसान पहुंचा था। तब 44भारतीय वायुसेना ने 1 लाख 10 हजार से ज्यादा लोगों को एयरलिफ्ट किया था। प्रसन्नता और आश्चर्य की इतनी भीषण बाढ़ में भी श्री केदारनाथ मंदिर का पूरा ढांचा जरा भी प्रभावित नहीं हुआ था। भारतीय पुरातत्व सोसायटी के अनुसार उस बाढ़ के बाद भी मंदिर के पूरा ढांचा पूरी तरह सुरक्षित है I 2013 की बाढ़ के बाद मंदिर को कितना नुकसान हुआ था उसका अध्ययन करने के लिए “आईआईटी मद्रास” ने मंदिर पर “एनडीटी परीक्षण” किया था, जिसके बाद घोषणा की गई थी कि मंदिर पूरी तरह से सुरक्षित और मजबूत है।
कोई साधन उपलब्ध नहीं था
मंदिर के अक्षुण खड़े रहने के पीछे हिंदुओं के महान पुरखों का दिव्य ज्ञान है। वो है मंदिर निर्माण के लिए दिशा और स्थान का चयन किया गया है। दूसरी बात यह है कि इसमें इस्तेमाल किया गया पत्थर बहुत सख्त और टिकाऊ होता है। खास बात यह है कि इस मंदिर के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया गया पत्थर वहां उपलब्ध नहीं है, तो जरा सोचिए कि उस पत्थर को वहां कैसे ले जाया जा सकता था ? उस समय इतने बड़े पत्थर को ढोने के लिए उपकरण भी उपलब्ध नहीं थे। इस पत्थर की विशेषता यह है कि 400 साल तक बर्फ के नीचे रहने के बावजूद भी इसके “गुणों” में कोई अंतर नहीं पड़ा।
श्री केदारनाथ मंदिर की ताकत अभेद्य है
आज विज्ञान कहता है कि मंदिर के निर्माण में जिस पत्थर और संरचना का इस्तेमाल किया गया है, तथा जिस दिशा में ये बना है उसी के कारण यह मंदिर इस बाढ़ में बच पाया है। श्री केदारनाथ मंदिर “उत्तर-दक्षिण” के रूप में बनाया गया है। जबकि भारत में लगभग सभी मंदिर “पूर्व-पश्चिम” हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि ये मंदिर “पूर्व-पश्चिम” होता तो पहले ही नष्ट हो चुका होता। या कम से कम 2013 की बाढ़ में अवश्य तबाह हो जाता। परंतु इस दिशा की वजह से श्री केदारनाथ मंदिर बच गया है। इसलिए, मंदिर ने प्रकृति के चक्र में ही अपनी ताकत बनाए रखी है। मंदिर के इन मजबूत पत्थरों को बिना किसी सीमेंट के “एशलर” तरीके से एक साथ चिपका दिया गया है। इसलिए पत्थर के जोड़ पर तापमान परिवर्तन के किसी भी प्रभाव के बिना मंदिर की ताकत अभेद्य है।
विशाल और भारी भरकम शिला
2013 में, मंदिर के पिछले हिस्से में एक बड़ी चट्टान फंस गई और पानी की धार विभाजित हो गई I मंदिर के दोनों तरफ से बाड़ का तेज पानी अपने साथ सब कुछ बहा ले गया लेकिन मंदिर और मंदिर में शरण लेने वाले लोग सुरक्षित रहे। जिन्हें अगले दिन भारतीय वायुसेना ने एयरलिफ्ट किया था। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मंदिर के निर्माण के लिए स्थल, उसकी दिशा, सही निर्माण सामग्री और यहां तक कि प्रकृति को भी ध्यान से विचार किया गया था। आज के वैज्ञानिकों के लिए ये अनसुलझी पहेली है की जिस विशाल और भारी भरकम शिला का उपयोग 6 फुट ऊंचे मंच के निर्माण के लिए किया गया उसे कैसे मन्दिर स्थल तक ले जाया गया होगा ?
शिव शंकर जी और महाबली भीम सेन
सच्ची बात तो यह है कि जहां पर ज्ञान विज्ञान और साइंस खत्म हो जाता है, वहीं से ही सनातन धर्म की महानता आरंभ हो जाती है। हिंदुओं के पवित्र ग्रंथों के अनुसार श्री केदारनाथ धाम का संबंध भगवान शिव शंकर जी से है, और महाबली भीम सेन जी से है। ऐसे में इन भारी भरकम पत्थरों का उस हिम युग में मंदिर स्थल तक पहुंच जाना और हर प्रकार की बाधाओं का सामना करने वाला चिरस्थाई मंदिर बना देना, यह निश्चित ही भगवान भोलेनाथ जी की ही कृपा है।
बताने की आवश्यकता नहीं है की जो शिला पहले कभी वहां पर थी ही नहीं, बाढ़ के समय वह कहीं से आकर मंदिर के ठीक पीछे इस तरह से जम गई की बाढ़ के साथ वह कर आने वाले बड़े-बड़े पत्थरों और पानी की प्रचंड धारा का मंदिर का कुछ बिगाड़ ही नहीं सकी।