"Gavo Vishwasya Matarah !! Jai Gaumata Jai Gopal, Every wish of the people is fulfilled in this divine cowshed."
वेदलक्ष्णा गाए है चलता फिरता तीर्थों का समूह🙏
सनातन🚩समाचार🌎 सनातन धर्म में गाय का बहुत भारी महत्व है। हिंदू मान्यता के अनुसार गौ माता के शरीर में सभी देवी देवताओं का वास है। गाय का महत्व हमेशा से भारतीय जनमानस में रहा है। शास्त्रों की बात की जाए तो सनातन धर्म का ऐसा कोई भी वेद शास्त्र अथवा ग्रंथ नहीं है जिसमें गाय की महिमा का वर्णन किया गया हो। भगवान श्री कृष्ण जी तो स्वयं गौ सेवा करते थे और आज भी हिंदू गौ सेवा करना अपना सौभाग्य मानते हैं। आज जितने भी गाय देखी जाती हैं उनमें ज्यादा संख्या जर्सी गायों की ही होती है। जस्सी गाय वह गाय होती हैं जिसे भारतीय गाय और सूअर अथवा घोड़े इत्यादि की ब्रीडिंग करके तैयार किया गया होता है, और ज्यादातर इन्हीं का दूध बाजार में मिलता है। आधुनिक शोधों से पता चलता है कि इस मिक्स ब्रीड का दूध मनुष्य की सेहत के लिए अच्छा नहीं है परंतु जो वेद लक्ष्णा गाए हैं जिसका साधन धर्म में महत्व है उसका दूध हर प्रकार से मनुष्य के लिए स्वास्थ्य प्रद है। परंतु यह वेद लक्षणा देसी गाय हिंदुस्तान में दुर्लभ होती जा रही है। राजस्थान में तो देसी गाय है परंतु अन्य प्रदेशों में बहुत कम है। हिंदू मान्यता के अनुसार देसी गाय सर्वश्रेष्ठ है और अब जो इसे आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी सही माना है। देशभर में बहुत सारी गौशाला है परंतु एक ऐसी दिव्य गौशाला भी है जहां पर केवल यह वेद लक्षण गाय ही देखी जाती हैं। 🚩👉ये है लुधियाना (पंजाब) की "संत श्री आसारामजी बापू की गौशाला" जोकि खानपुर गांव में है। यहां पर सारा दिन श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है। लोग यहां दूर-दूर से आकर माथा टेकते हैं और पूजा भी करते हैं। विशेष त्योहारों पर तो यहां लगभग मेले जैसा ही वातावरण रहता है। यहां पर विशेष रूप से बनाया गया एक सप्त गौ मंदिर भी है जिसमें सात रंग की वेद लक्ष्णा गाय स्थापित रहती हैं। शास्त्रों के अनुसार जिस स्थान पर सात रंग की देसी गाय एक साथ हो वो स्थान धरती का सर्वोच्च तीर्थ क्षेत्र है। लोग इस सप्त गाय मंदिर की परिक्रमा करते हैं, यहां पूजा अर्चना भी करते हैं। इसके साथ ही सारी गौशाला में केवल देसी गाय ही हैं। इस गौशाला के द्वारा लगभग हर साल एक अभियान चलाया जाता है जिसमें सारे शहर तथा आसपास के क्षेत्रों में लावारिस घूम रही देसी गायों को यहां पर लाया जाता है। इस गौशाला में लगभग वही गाए हैं जो अब दूध नहीं देती हैं क्योंकि इन गायों को दूध के व्यापारियों के द्वारा बूढ़ी होने पर सड़कों पर छोड़ दिया गया था। इन्हें यहां लाकर इन गायों की सेवा की जाती है, उन्हें पाला जाता है। इस गौशाला की एक विशेषता यह भी है कि यहां पर गाय बहुत कम बीमार पड़ती हैं क्योंकि इनका पालन-पोषण ही इस प्रकार से किया जाता है। ये बीमार ही ना पड़े इसलिए इन्हें लगातार चारे के साथ औषधियां भी दी जाती हैं। इस गौशाला के पास वह सरकारी प्रमाण पत्र भी है जिसमें यह घोषणा की गई है कि इस गौशाला में उच्चतम गुणवत्ता का दूध मिला है। यह गौशाला केवल और केवल धार्मिक दृष्टि से ही चलाई जाती है इसलिए यहां पर गायों की देखरेख बहुत अच्छे ढंग से की जाती है । गर्मियों में जहां गायों के लिए पंखे इत्यादि की पूरी व्यवस्था रहती है वही सर्दियों के इस भयंकर मौसम में गायों को सर्दी ना लगे इस बात की भी पूरी व्यवस्था की जाती है। क्योंकि यह गौशाला नहर के किनारे हैं और इसके चारों तरफ खेत हैं इसलिए यहां पर सर्दी भी बहुत ज्यादा होती है
ऐसे में गायों को बचाने के लिए विशेष व्यवस्थाएं इस गौशाला में की जाती हैं। इस गौशाला का महत्व तब और बढ़ जाता है जब श्रद्धालु यहां आकर सप्त गौ मंदिर की परिक्रमा करके कोई मन्नत मांग कर जाते हैं तथा जब उनकी इच्छा पूर्ण हो जाती है वह फिर से आकर गौशाला में मत्था टेकते हैं। संत श्री आशारामजी बापू आश्रम के द्वारा संचालित ये गौशाला अपने आप में अदभुत और दिव्य गौशाला है।
🚩🙏वंदे गौ मातरम🙏🚩