ध्यान शांति एकाग्रता स्वस्थ जीवन और प्रसन्न जीवन प्रत्येक व्यक्ति की मांग है।
वर्तमान की आपाधापी में जबकि मनुष्य कई तरह के तनावों से ग्रस्त हैं, कभी कारोबार के तनाव कभी नौकरी धंधा की चिंता तो कभी पारिवारिक व्यवस्थाओं की चिंता। इन सबके चलते कई बार ऐसा लगता है कि मनुष्य केवल एक यंत्र बनकर रह गए हैं, जिनका लक्ष्य केवल कमाना खाना, परिवार को खिलाना मात्र है। और यह सब करते करते तनाव चिंता अस्वाद खिन्नता में डूबे रहना ही जीवन बन गया है।
इस भागा दौड़ी में यह भी पता नहीं चलता कि कब सुबह हुई कब दोपहर कब रात्रि बस केवल चिंता और तनाव ही तनाव रहने लगा है। आवश्यक नहीं कि यह स्थिति सभी मनुष्यों की हो सकती है, परंतु अधिकतर थोड़ा कम या ज्यादा लगभग सभी की यही स्थिति है। तो ऐसा क्या करें कि इस सब से थोड़ा विश्राम मिले मन शांत रहे और प्रसन्न भी रहे तथा इसके साथ ही शरीर में ऐसी स्फूर्ति भी आए की जिससे स्वस्थ रहते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
तो ऐसे में सबसे प्रभावशाली विधि है “ध्यान”
ध्यान सनातन धर्म मे एक ऐसी अध्यात्मिक प्रक्रिया है जिस में डूब कर मनुष्य आनंद के अथाह सागर में गोते लगाता है, परमानंद और शांति का अनुभव करता है, जिससे मानसिक थकान तो मिटती ही है साथ ही शारीरिक थकान भी मिट कर पुनः और तेजी से अपने सांसारिक कार्य और व्यवसाय करने की शक्ति प्राप्त होती है। शास्त्रों में ध्यान को सर्वसरेष्ठ तप भी कहा गया है। ज्यों ज्यों साधक ध्यान में परिपक्व होता जाता है त्यों त्यों उसके सामने अध्यात्म अथवा संसार के गूढ़ रहस्य प्रकट होते जाते हैं। ध्यान अपने आप मे एक अथाह समुद्र है जिसकी गहराई को नापा नहीं जा सकता है। अतः ये अति आवश्यक है कि मनुष्य को संसार के सारे काम करते हुए भी प्रतिदिन ऐसा कोई समय निकाल ही लेना चाहिए जो केवल और केवल उसके अपने लिए हो। शांति के लिए हो। नए उत्साह के लिए हो।।
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