स्वदेशी पारंपरिक शौचालय या विदेशी सीट ? अक्सर हम लोग इस पर ध्यान नहीं देते हैं और यूं कहा जाए कि आजकल तो विदेशी सीट का प्रचलन एक तरह से आधुनिकता का प्रतीक बन गया है जबकि वास्तविकता यह है कि हमारे महान पुरखे आरम्भ से जिस तरह अपने स्वास्थ्य को संभालते आ रहे रहे हैं वह सब आज भी प्रासंगिक है और विदेशी संस्कारों का अंधाधुंध अनुसरण करने के कारण हमारे जीवन पर बहुत सारे कुप्रभाव भी पढ़ रहे हैं इनको प्रभावों के चलते आज पुनः अपनी प्राचीन रहन-सहन की पद्धतियां की याद आ रही है। वीडियो में सुनिएं इस बारे में आधुनिक डॉक्टर साहब के विचार।
https://youtu.be/qo08WPSldQg