🚩सत्य सनातन धर्म की जय हो🙏महाबली श्री कृष्ण भगवान की जय हो🙏
उप्लब्ध पवित्र विवरणों के अनुसार एक बार सत्राजित ने भगवान सूर्य की उपासना की जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने अपनी स्यमन्तक नाम की मणि उसे दे दी. एक दिन जब श्री कृष्ण साथियों संग खेल रहे थे तभी सत्राजित स्यमन्तक मणि मस्तक पर धारण किए उनसे मिलने के लिए वहां पर आए तब श्री कृष्ण के मित्रों ने सत्राजित से कहा कि आपके पास जो यह अलौकिक मणि है इनका वास्तविक अधिकारी तो राजा होता है इसलिए आप इस मणि को हमारे राजा उग्रसेन को दे दो। यह बात सुन सत्राजित बिना कुछ बोले ही वहाँ से उठ कर चल दिए।इसके बाद सत्राजित ने स्यमन्तक मणि को अपने घर के मन्दिर में स्थापित कर दिया।
एक दिन जब सत्राजित का भाई प्रसेनजित उस मणि को पहन कर घोड़े पर सवार हो आखेट के लिये गया तब वन में प्रसेनजित पर एक सिंह ने हमला कर दिया जिसमें वह मारा गया। सिंह अपने साथ मणि भी ले गया।उस सिंह को ऋक्षराज जामवंत ने मारकर वह मणि प्राप्त कर ली और अपनी गुफा में चले गए।जामवंत ने उस मणि को अपने बालक को दे दिया जो उसे खिलौना समझ उससे खेलने लगा,
श्री कृष्ण भगवान जी पे लगा चोरी का आरोप
उधर जब प्रसेनजित लौट कर नहीं आया तो सत्राजित ने समझा कि उसके भाई को कृष्ण ने मारकर मणि छीन ली है। श्री कृष्ण जी पर चोरी के सन्देह की बात पूरे द्वारिकापुरी में फैल गई,अपने उपर लगे इस कलंक को धोने के लिए वे नगर के प्रमुख वीरों को साथ स्यमन्तक मणि की खोज में निकल पड़े। वन में उन्होंने अश्व सहित प्रसेनजित को मरा हुआ देखा पर मणि का कहीं पता नहीं चला, वहाँ निकट ही सिंह के पंजों के चिन्ह थे. सिंह के पदचिन्हों के सहारे आगे बढ़ने पर उन्हें मृत सिंह का शरीर मिला।
और साथ ही वहाँ पर रीछ के पैरों के पद-चिन्ह भी मिले जो कि एक गुफा तक गये थे,जब वे उस भयंकर गुफा के निकट पहुँचे तब श्री कृष्ण ने साथियों से कहा कि तुम लोग यहीं रुको मैं इस गुफा में प्रवेश कर मणि ले जाने वाले का पता लगाता हूँ, इतना कहकर वे अकेले उस गुफा के भीतर चले गये।
नेशनल हाईवे-12 भोपाल-जबलपुर मार्ग पर रायसेन जिले के कस्बा बरेली से लगभग 15 किमी दूर स्थित ग्राम जामगढ़ के पास विंध्यांचल पर्वत श्रृंखला की एक पहाड़ी में बनी गुफा महाभारत काल के अनेकों प्रमाण स्पष्ट हैं।
वहाँ उन्होंने देखा कि वह मणि एक रीछ के बालक के पास है जो उसे हाथ में लिए खेल रहा था। भगवान श्री कृष्ण ने उस मणि को उठा लिया, यह देख कर जामवंत अत्यन्त क्रोधित होकर श्री कृष्ण को मारने के लिये झपटा तो जामवंत और श्री कृष्ण में भयंकर युद्ध होने लगा. जब श्री कृष्ण गुफा से वापस नहीं लौटे तो उनके साथी उन्हें मरा हुआ समझ कर बारह दिन के उपरांत वहाँ से द्वारिकापुरी लौट गये तथा समस्त वृतांत वासुदेव और देवकी से कहा। वासुदेव और देवकी व्याकुल होकर महामाया दुर्गा की उपासना की तब उनकी उपासना से प्रसन्न हो देवी दुर्गा ने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा पुत्र तुम्हें अवश्य मिलेगा।
भगवान श्री कृष्ण बने श्री राम
श्री कृष्ण और जामवंत दोनों ही पराक्रमी थे. युद्ध करते हुये गुफा में अट्ठाईस दिन बीत गए। कृष्ण की मार से महाबली जामवंत की नस टूट गई वह अति व्याकुल हो उठा और अपने स्वामी श्री रामचन्द्र जी का स्मरण करने लगे, जामवंत के द्वारा श्री राम के स्मरण करते ही भगवान श्री कृष्ण ने श्री रामचन्द्र के रूप में उसे दर्शन दिये तब जामवंत उनके चरणों में गिर गया और बोला, “हे भगवान अब मैंने जाना कि आपने यदुवंश में अवतार लिया है.” श्री कृष्ण ने कहा, “हे जामवंत! तुमने मेरे राम अवतार के समय रावण के वध हो जाने के पश्चात मुझसे युद्ध करने की इच्छा व्यक्त की थी और मैंने तुमसे कहा था कि मैं तुम्हारी इच्छा अपने अगले अवतार में अवश्य पूरी करूँगा सो अपना वचन सत्य सिद्ध करने के लिये ही मैंने तुमसे यह युद्ध किया है” जामवंत ने भगवान श्री कृष्ण की अनेक प्रकार से स्तुति की और अपनी कन्या जामवंती का विवाह उनसे कर दिया।
🚩जामवन्त जी की पवित्र गुफा जहां श्री कृष्ण और जामवन्त का युद्ध हुआ था🙏
भगवान श्री कृष्ण जामवंती को साथ ले द्वारिका पुरी पहुँचे, उनके वापस आने से द्वारिका पुरी में चहुँ ओर प्रसन्नता व्याप्त हो गई, श्री कृष्ण ने सत्राजित को बुलवाकर उसकी मणि उसे वापस कर दी. सत्राजित अपने द्वारा श्री कृष्ण पर लगाये गये झूठे कलंक के कारण अति लज्जित हुआ और पश्चाताप करने लगा और श्री कृष्ण जी को मणि भेंट करने लगा किन्तु शरणागत भक्तवत्सल श्री कृष्ण जी ने उस मणि को स्वीकार न करके पुनः सत्राजित को वापस कर दिया।
स्तय सनातन धर्म की जय।
जय श्री राम।
महाबली भगवान श्री कृष्ण की जय।