हमारे हिन्दुस्थान की सभ्यता सारे विश्व में अति प्राचीन है किसी समय हमारे भारत देश की सीमाएं ईरान इराक अफगानिस्तान तिब्बत इत्यादि बहुत स्थानों तक थीं, इसलिए हमारी प्राचीन सभ्यता हमारे प्राचीन धर्म की निशानियां भी चारों ओर फैली हुई थी जो आज भी कहीं ना कहीं मिलती ही रहती हैं, जो बताती हैं की सनातन धर्म कितना महान है और कितना प्राचीन है, सारे विश्व में सनातन धर्म से संबंधित अनेक प्रसिद्ध विशाल और भव्य मंदिर थे जो कालांतर में आततायियों द्वारा ध्वस्त कर दिए गए परंतु अभी भी हिन्दुस्थान में ऐसे बहुत से अद्भुत मंदिर हैं जो मनुष्य को अचंभित कर देने का सामर्थ्य रखते हैं, ऐसा ही एक दिव्य मंदिर है बृहदीश्वर मन्दिर।
बृहदीश्वर 🕉️ मन्दिर या राजराजेश्वरम् तमिलनाडु के तंजौर में स्थित है। यह हिंदू मंदिर कला की प्रत्येक शाखा – वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, प्रतिमा विज्ञान, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का अनुपम भंडार है।
सारा ग्रेनाइट से निर्मित है।
इस विशाल और भव्य मंदिर को 11वीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो कि सारा ग्रेनाइट पथर का बना हुआ है। यह अपनी भव्यता, वास्तुशिल्प और केन्द्रीय गुम्बद इत्यादि से लोगों को आकर्षित करता है। इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है। इसे पेरुवुटैयार कोविल भी कहते हैं।
अपने समय के विश्व के विशालतम संरचनाओं में गिने जाने वाले इस अलौकिक मन्दिर का निर्माण 1003-1010 ई. के बीच चोल शासक प्रथम राजराज चोल ने करवाया था। इस कारण इस मंदिर का एक नाम राजराजेश्वर मन्दिर भी है। इस मन्दिर की 13 मंजिलें बनी हुईं हैं। इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 66 मीटर है। भगवान शिव शंकर जी का यह मंदिर अपने आप मे बहुत दिव्य आभा समेटे हुए है।इस मंदिर के आराध्य देव भगवान शिव हैं। मुख्य मंदिर के अंदर 12 फीट ऊँचा शिवलिंग स्थापित है। यह द्रविड वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। मुख्य मंदिर और गोपुरम निर्माण की शुरु से यानि 11वीं सदी के बने हुए हैं। इसके बाद मंदिर का कई बार निर्माण, जीर्णोद्धार और मरम्मत हुआ है।
युद्ध और मुगल शासकों के आक्रमण और तोड़-फोड़ से हुई मंदिर को क्षति हुई। बाद में जब हिन्दू राजाओं ने पुनः इस क्षेत्र को जीत लिया तो उन्होंने इस मंदिर को ठीक करवाया और कुछ अन्य निर्माण कार्य भी करवाए। बाद के राजाओं ने मंदिर की दीवारों पर पुराने पड़ रहे चित्रों पर पुनः रंग करवाके उसे संवारा।
भगवान भोले नाथ के इस मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम् के भीतर एक विशाल चौकोर मंडप है। वहां चबूतरे पर नन्दी जी विराजमान हैं। नन्दी जी की यह प्रतिमा 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर ऊंची है। भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नन्दी जी की यह दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है। तंजौर में अन्य दर्शनीय मंदिर हैं- तिरुवोरिर्युर, गंगैकोंडचोलपुरम तथा दारासुरम्।
यह मंदिर उत्कीर्ण संस्कृत व तमिल पुरालेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस मंदिर के निर्माण कला की एक आश्चर्यजनक विशेषता यह है कि इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर कहीं नहीं पड़ती। इसके शिखर पर एक स्वर्णकलश स्थापित है। जिस बड़े पाषाण पर यह कलश स्थित है, अनुमानत: उसका वजन 2200 मन अर्थात 80 टन है, और यह एक ही पाषाण से बना है। मंदिर में स्थापित विशाल, भव्य शिवलिंग को देखने पर उनका वृहदेश्वर नाम सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होता है।