भारत की सनातन संस्कृति की धरोहर का सांस्कृतिक दूत है। आदि काल से वैदिक संस्कृति, सनातन संस्कृति, हिंदू संस्कृति, आर्य संस्कृति, भारतीय संस्कृति एक दूसरे के पर्याय हैं जिसमें समस्त मांगलिक कार्यों के प्रारंभ करते समय उत्सवों में, पर्वों में, घरों-मंदिरों-देवालयों-वृक्षों, रथों-वाहनों पर भगवा ध्वज या केसरिया पताकाएं फहराई जाती रही हैं।
हिंदू धर्म में घर की छत पर ध्वज-पताका लगाने को शुभ और असरदायक माना जाता है। यह ध्वज कई कारणों से लगाया जाता है।
हालांकि ज्योतिष के अनुसार ध्वज लगाने के कारण और उनके लाभ अलग-अलग हैं। इसके अलावा हर घर में कोई ना कोई वास्तु दोष होते ही हैं, जिससे सकारात्मक उर्जा प्रभावित होती है। इससे परिवार के सदस्यों को आए दिन कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस दोष को दूर करने में घर की छत पर लगा झंडा यानि ध्वज बड़ा लाभदायक और शुभ माना जाता है।
मान्यता है कि किसी भी भवन की छत रहने वाले लोगों की कुंडली का बारहवां भाव यानि घर होती है। इसलिए ग्रहों से संबंधित दोष को शांत करने के लिए हनुमान जी या दुर्गा माता की पताका लगाई जाती है। ज्यादातर लोग नवरात्रि के दौरान इन ध्वज-पताकाओं को अपने घर, भवन पर लगाते हैं। वास्तु नियम अनुसार अग्नि कोण यानि दक्षिण पूर्व कोने में ध्वज लगाना उचित माना गया है। इस तरफ झंडा लगाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है व घर में बरकत रहती है और सकारात्मक उर्जा का संचार होता है।
वास्तु अनुसार घर के उत्तर-पश्चिम कोने में झंडा लगाना भी विशेष फलदायक माना जाता है। इस तरह वास्तु अनुसार दिशा में झंडा लगाने से घर में धन की वृद्धि व तरक्की होती है और लाल,केसरिया,भगवा या नारंगी का झंडा लगाया जा सकता है। इन झंडों पर देवी मां व हनुमान जी या शुभ चिन्ह प्रतीक अंकित होना चाहिए जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है। इस तरह घर की छत पर ध्वज-पताका लगाकर सकारात्मक उर्जा व शुभ फलों की प्राप्ति की जा सकती है।
अलग-अलग होते हैं ध्वज और पताका
ध्वज और पताका अलग-अलग होते हैं दोनों को ही हम झंडा मान सकते हैं। पताका त्रिकोणाकार होती है जबकि ध्वजा चतुष्कोणीय। प्रत्येक हिन्दू देवी-देवता अपने साथ अस्त्र-शस्त्र तो रखते ही हैं साथ ही उनका एक ध्वज भी होता है। यह ध्वज उनकी पहचान का प्रतीक माना गया है। भारतीय संस्कृति में समस्त मांगलिक कार्यों के प्रारंभ करते समय उत्सवों में, पर्वों में, घरों-मंदिरों-देवालयों-वृक्षों पर भगवा ध्वज या केसरिया पताकाएं फहराई जाती रही हैं।
कैसा होना चाहिए ध्वज
स्वास्तिक या ॐ लगा हुआ केसरिया ध्वज होना चाहिए। दो प्रकार का ध्वज होता है। एक त्रिभुजाकार और दूसरा दो त्रिभुजाकार ध्वज। दोनों में से कोई एक प्रकार का ध्वज लगा सकते हैं। भगवा ध्वज में तीन तत्व-ध्वजा, पताका (डोरी) और डंडा-जिन्हें ईश्वरीय स्वरूप माना गया है जो आधिभौतिक, आध्यात्मिक, आधिदैविक हैं। यह ध्वजा परम पुरुषार्थ को प्राप्त कराती है एवं सभी प्रकार से रक्षा करती है।
क्यों लगाते हैं ध्वज
-ध्वजा को विजय और सकारात्मकता ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए पहले के जमाने में जब युद्ध में या किसी अन्य कार्य में विजय प्राप्त होती थी तो ध्वजा फहराई जाती थी। इससे यश, कीर्ति और विजय मिलती है। ध्वजा या झंडा लगाने से घर में रहने वाले सदस्यों के रोग, शोक व दोष का नाश होता है और घर की सुख व समृद्धि बढ़ती है।
-वास्तु के अनुसार भी ध्वजा को शुभता का प्रतीक माना गया है। माना जाता है कि घर पर ध्वजा लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश तो होता ही है साथ ही घर को बुरी नजर भी नहीं लगती है।
-ज्योतिष के अनुसार राहु को रोग, शोक व दोष का कारक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यदि घर के उत्तर पश्चिम में ध्वजा लगाने से घर में रहने वाले सदस्यों के रोग, शोक व दोष का नाश होता है और घर की सुख व समृद्धि बढ़ती है।
-घर की छत पर लगाने वाले ध्वज रणभूमि में रथ पर लगाने वाले ध्वज दोनों में कुछ फर्क होता है। रणभूमि में अवसर के अनुकूल 8 प्रकार के झंडों का प्रयोग होता था। ये झंडे थे- जय, विजय, भीम, चपल, वैजयन्तिक, दीर्घ, विशाल और लोल। ये सभी झंडे संकेत के सहारे सूचना देने वाले होते थे। लोल झंडा भयंकर मार-काट का सूचक था।
-घर की छत पर तीन रंग में से किसी एक रंग का ध्वज लगा सकते हैं। गेरू और भगवा रंग एक ही है, लेकिन केसरिया में मामूली-सा अंतर है। इसके अलावा तीसरा रंग है पीला।
-घर के ऊपर वायव्य कोण में स्वास्तिक या ॐ लगा हुआ केसरिया ध्वज लगाकर रखें। इससे यश, कीर्ति और विजय मिलती है।