पूज्य बापू जी का राष्ट्र के नाम हितकारी संदेश
गौपालको और गौप्रेमीयों के लिए बहुत उपयोगी जानकारी
देशी गाय के दूध, छाछ, झरण (मूत्र), गोबर आदि से अनेक बीमारियों से रक्षा होती है और गौ-चिकित्सा के अंतर्गत इनके प्रयोग से विभिन्न बीमारियाँ मिटायी भी जाती हैं । पंचगव्य से तो कई असाध्य रोग भी मिटाये जाते हैं । गौ-चिकित्सा एवं आयुर्वेदिक, प्राकृतिक आदि चिकित्सा-पद्धतियों को बढ़ावा दिया जाय ताकि विदेशी दवाओं के लिए होने वाले हजारों करोड़ रूपयों के खर्च और उनके दुष्प्रभावों (साईड इफेक्ट्स) से बचा जा सके ।
केमिकल के फिनायल व उसकी दुर्गन्ध से हवामान दूषित होता है। गौ फिनायल से आपकी सात्त्विकता, सुवासितता बढ़ेगी ही।
गौ-गोबर के कंडे से जो धूआँ निकलता है, उससे हानिकारक कीटाणु नष्ट होते हैं । शव के साथ श्मशान तक की यात्रा में मटके में गौ-गोबर के कंडे जलाकर ले जाने की प्रथा के पीछे हमारे दूरद्रष्टा ऋषियों की शव के हानिकारक कीटाणुओं से समाज की सुरक्षा लक्षित है ।
गोमूत्र अर्क बनाने वाली संस्थाएँ एवं जो लोग गोमूत्र से फिनायल व खेतों के लिए जंतुनाशक दवाइयाँ बनाते हैं, वे 8 रूपये प्रति लीटर के मूल्य से गोमूत्र ले जाते हैं । गाय 24 घंटे में 7 लीटर मूत्र देती अगर उसका सही से प्रयोग हो जाये तो उससे 56 रूपये होते हैं। उसके मूत्र से ही उसका खर्चा आराम से चल सकता है ।
अपने खेतों में गायों का होना पुण्यदायी, परलोक सुधारने वाला और यहाँ सुख-समृद्धि देने वाला साबित होगा । अगर गोमूत्र, गौ-गोबर का खेत-खलिहान में उपयोग हो जाय तो उनसे उत्पन्न अन्न, फल, सब्जियाँ प्रजा का कितना हित करेंगी, कल्पना नहीं कर सकते !
भारत को भूकम्प की आपदाओं से बचाने के लिए मददगार है गौ-सेवा ।
हे देशवासियो ! सुज्ञ सरकारो ! इस बात पर आप सकारात्मक ढंग से सोचने की कृपा करें ।
निवेदन …….
गाय ईश्वर की अनमोल कृति है । गाय का प्राकृतिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक – सभी दृष्टियों से महत्त्व है । जैसे ब्रह्मनिष्ठ संतों के बिना जीवन में आध्यात्मिक उन्नति असम्भव है । गाय का केवल दूध ही नहीं बल्कि पाँचों गव्य (दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र) और इनका मिश्रण पृथ्वी पर अमृततुल्य हैं । उसके अलावा गौ की सेवा और गौओं से बनने वाला वातावरण, गो-रज, गायों के रँभाने की ध्वनि और गायों की आभा – ये सभी अपना-अपना महत्त्व रखते हैं, अपने-अपने लाभ देते हैं । गाय स्वास्थ्य, सात्त्विकता, आध्यात्मिकता, पर्यावरण-सुरक्षा, राष्ट्रीय समृद्धि – सभी में लाभदायी एवं महत्त्वपूर्ण है । गायों का महत्त्व केवल इन्हीं बातों पर नहीं है, वे दुःख-दरिद्रता को भी दूर करने वाली हैं ।
पूर्वकाल में लोग गौ की महिमा को जानते थे और उसका खूब लाभ भी लेते थे इसलिए गोहत्या नहीं होती थी । दूध, घी आदि से लोग परिपुष्ट थे । ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों का सत्संग-श्रवण व गव्यों का सेवन विशेषरूप से होता था । गौ-आधारित अर्थतंत्र के बल पर भारत में आर्थिक समृद्धि बहुत थी ।
यदि हम सोचते हैं कि ‘हम गौ-सेवा क्यों करें ? गोदुग्ध आदि का सेवन क्यों करें ?…. ‘ तो जरा विचार करें कि आज हम अपने स्वास्थ्य पर इतना खर्च करते हैं फिर भी स्वास्थ्य की क्या स्थिति है ? यदि देशी गाय व उससे प्राप्त होने वाले गव्यों की उपयोगिता को समझकर उनका लाभ लिया जाय तो अनेक प्रकार की बीमारियों से तो सहज ही बचेंगे, साथ ही प्रसन्न मन व सात्त्विक बुद्धि रूपी धन भी हमें प्राप्त होगा । और यही धन है जो हमारी सर्वांगीण उन्नति करेगा ।
बहुत ध्यान देने वाली बात
इस पुस्तक में सामान्य व्यक्ति सुखी व स्वस्थ जीवन के लिए गाय से कैसे लाभ ले, उसकी आर्थिक स्थिति कैसे सुधरे – इनके लिए सुंदर प्रयोग दिये गये हैं, साथ ही साथ अर्थतंत्र की रीढ़ कैसे है इस पर भी प्रकाश डाला गया है । आज जबकि विदेशी लोग भी भारतीय नस्ल की गायों पर आया कर रहे हैं और ‘ए – 2 दूध’ (‘ए-1 दूध’ जो जहरीला रसायन ‘बीटा केसोमॉर्फीन–7’ होता है उससे रहित अर्थात् भारतीय नस्ल की गाय का दूध) का प्रचार कर रहे हैं ऐसे में भारतवासियों को जरूरी है कि वे भारतीय नस्ल की गाय की महत्ता समझें तथा जर्सी, होल्सटीन आदि विदेशी पशु, जिन्हें ‘गाय’ का नाम दिया गया है, उनसे होने वाली हानियों के बारे में जानकर जागरूक हों ।
यह पुस्तक बताती है कि गौरक्षा एवं गौ-पालन केवल किन्हीं धार्मिक संगठनों का धार्मिक मुद्दा नहीं है अपितु मानवमात्र एवं प्राणिमात्र के जीवन से जुड़ा महत्त्वपूर्ण पहलू है और हम व्यक्तिगत स्तर पर गौरक्षा में किस प्रकार योगदान देकर अपना जीवन स्वस्थ, समृद्ध और उन्नत कर सकते हैं ।
संतों ने गौरक्षा के लिए पूरा जीवन लगाया और आज भी लगा रहे हैं । इस पुस्तक को पढ़कर उन संतों की एवं गाय की महिमा हम समझ लें तथा गौ से विभिन्न प्रकार से लाभान्वित हो के अपना सर्वांगीण विकास साध लें – इसी सद्भाव से यह पुस्तक समाजरूपी भगवान के करकमलों में अर्पित है ।
इस पुस्तक को स्वयं पढ़ना और अन्य लोगों तक पहुँचाना बहुत बड़ी राष्ट्रसेवा है, संस्कृति सेवा है ।