“Worship or Namaz is not allowed but Muslims were offering Namaz, Qutub Minar will not be excavated: ASI.”
मुहम्मद गौरी ने 27 मंदिरों को तोड़ कर बनाया था “कुव्वत उल इस्लाम”
सनातन🚩समाचार🌎 लगता है अब हिंदुओं को अच्छी तरह समझ में आ गया है कि कानून के अनुसार भी उन्हें उन के बहुत सारे अधिकार मिल सकते हैं। विशेषकर वह मंदिर जो कभी आक्रांताओं द्वारा विध्वंस कर दिए गए थे। अब हिंदुओं से छीने जा चुके इन मंदिरों की पुनः प्राप्ति के लिए देश की कई अदालतों में अर्जियां लगाई जा रही हैं। जिनमें मुख्य हैं मथुरा की श्री कृष्ण जन्मभूमि और वाराणसी का श्री ज्ञानवापी मंदिर। इसके साथ ही शुरू से ही दिल्ली की कुतुब मीनार को भी हिंदू मंदिर ही कहा जा रहा है, जिसके वहां पर बहुत सारे प्रमाण भी मौजूद हैं।
हिंदुओं को यहां पर पूजा पाठ करने की अनुमति दी जाए
बता दें कि पिछले दिनों एक खबर चल रही थी कि दिल्ली की कुतुब मीनार परिसर की भी खुदाई की जाएगी जिसके बारे में अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने बताया है की दिल्ली की कुतुब मीनार में किसी भी धर्म के पूजा पाठ की या नमाज की अनुमति नहीं है। दरअसल इसके बारे में हिंदू पक्ष ने अदालत में एक याचिका दायर की थी कि हिंदुओं को भी यहां पर पूजा पाठ करने की अनुमति दी जाए, जिसका एएसआई ने अदालत में विरोध किया है। इस संस्था का कहना है कि इसकी पहचान बदली नहीं जा सकती। दिल्ली की साकेत कोर्ट में दायर याचिका में कहां गया था कि यहां पर जैन और हिंदू समाज को पूजा-पाठ की अनुमति दी जाए। इस याचिका पर न्यायपालिका ने एएसआई से जवाब मांगा था जो अब दे दिया गया है।
प्राचीन मंदिरों को तोड़कर उस पर कुतुबमीनार
अपने जवाब में संस्था ने कहा है कि कुतुब मीनार सन 1914 से ही संरक्षित स्मारकों की सूची में है, और तब से इसमें कभी पूजा नहीं की गई है इसलिए अब ना तो उसकी पहचान बदली जा सकती है और ना ही इसमें किसी को भी पूजा पाठ या नमाज की अनुमति दी जा सकती है। संस्था ने कहा है की हिंदू पक्ष की याचिका विधि सम्मत नहीं है। अदालत को दिए अपने जवाब में एएसआई ने यह भी कहा है कि प्राचीन मंदिरों को तोड़कर उस पर कुतुबमीनार बनाए जाने की बातें ऐतिहासिक तथ्यों का मामला है। संस्था के अनुसार यह एक पुरातात्विक महत्व का स्मारक है इसके बारे में 1958 में आए अधिनियम के अनुसार यहां केवल पर्यटन की ही अनुमति है पूजा पाठ की नहीं।
हरिशंकर जैन ने बताया
संस्था ने यह भी कहा है कि किसी भी धर्म/मजहब के मानने वालों को यहां किसी भी प्रकार के धार्मिक क्रियाकलापों की आज्ञा नहीं है। बता दें कि याचिकाकर्ता हरिशंकर जैन ने कहा है कि 27 मंदिरों के अवशेष कुतुब मीनार परिसर में जगह जगह स्पष्ट दिख रहे हैं और इनके बारे में इतने प्रमाण हैं कि जिन्हें कोई नकार ही नहीं सकता। उन्होंने बताया है कि यह प्रमाण ए एस आई के दस्तावेजों और पुस्तकों से ही लिए गए हैं। एएसआई द्वारा प्रकाशित संक्षिप्त इतिहास का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता हरिशंकर जैन ने बताया है कि मोहम्मद गौरी के की सेना के कमांडर कुतुबुद्दीन ऐबक ने 27 मंदिरों को तोड़कर इसी प्रांगण में कुवत उल इस्लाम नाम के ढांचे को खड़ा किया था।
उन्होंने यह भी बताया है कि इस सारे परिसर में भगवान श्री गणेश जी, श्री विष्णु जी और यक्ष समेत अन्य कई देवी-देवताओं के चित्र एवं प्रतिमाएं तो है ही साथ कुएं के साथ कमल के फूल और कलश जैसी आकृतियां भी हैं। जिनसे प्रमाणित होता है यह कोई सनातनी स्थान ही है। इस सब के बारे में एएसआई ने कहा है की यह एक निर्जीव स्मारक है इसलिए ऐसे अन्य स्थलों की तरह यहां भी किसी व्यक्ति भी प्रकार के पूजा-पाठ अथवा नमाज की गतिविधियां करने की मनाही है। बता दे कि मुस्लिमों ने यहां पर नमाज पढ़ने चालू कर दी थी, और बिना अनुमति के कई सालों से ऐसा चल रहा था परंतु अब जबकि नमाजियों से अनुमति के बारे में कागज दिखाने को कहा गया तो वह कुछ नहीं दिखा पाए।
इस सारे प्रकरण का पटाक्षेप करते हुए केंद्रीय संस्कृति मंत्री किशन रेड्डी ने स्पष्ट किया है कि कुतुब मीनार की खुदाई की फिलहाल कोई योजना नहीं है। सन 2005 में 4 मुसलमानों ने यहां पर नमाज पढ़नी शुरू की थी जिनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ती गई और 40 तक पहुंच गई थी, जो अब पूरी तरह बंद कर दी गई है।