“Then no one listened to the piles of Hindu dead bodies rotting. Delayed investigation is no longer possible: Supreme Court.”
यही है हिंदुस्तान के हिंदुओं का दुर्भाग्य, आजादी से अब तक कहीं कोई सुनवाई नहीं।
सनातन 🚩समाचार🌎 सन 1989 से लेकर 1998 तक कश्मीर में हिंदुओं को मार मार कर उनकी लाशों के ढेर लगा दिए गए थे। जिसके बारे में सभी जानते हैं परंतु द “कश्मीर फाइल्स” आने के बाद तो उस समय किए गए हिंदू नरसंहार की जानकारी सारी दुनिया को हो चुकी है।
हिंदुओं के इस क्रूर नरसंहार के बारे में हिंदुओं का दुर्भाग्य यह रहा कि जब हिंदुओं की हत्याएं की गई थी तब उनकी सुनने वाला कोई नहीं था। परंतु अब जबकि केंद्र में जबकि कथित हिंदुत्ववादी सरकार हैं ऐसे में अब भी हिंदुओं के उस क्रूर हत्याकांड पर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है।
बता दें कि कश्मीर में हुए हिंदुओं के नरसंहार के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश को लेकर अक्टूबर 2022 में एक पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी। 24 जुलाई 2017 में उस समय के मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने तब याचिका की सुनवाई करने से इनकार करते हुए कहा था कि, इस घटना को बहुत साल बीत चुके हैं इस कारण इस केस में अब सबूत जुटाना मुश्किल होगा।
सुप्रीम कोर्ट
तब अदालत ने यह भी कहा था कि कश्मीरी पंडितों के साथ जो कुछ हुआ वह हृदय विदारक हैं, परंतु 27 साल बीत जाने के बाद अब याचिका पर विचार करने से कोई भी उपयोगी उद्देश्य सामने नहीं आएगा। इस कारण इसकी जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट द्वारा तब सुनवाई से इनकार करने के बाद “रूट्स इन कश्मीर “नाम की एक NGO ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी। उस याचिका में कहा गया था कि देरी को आधार बनाकर याचिका को रद्द करना ठीक नहीं है।
उन्होंने सिख विरोधी दंगों का हवाला देते हुए दलील दी थी की इंसानियत के खिलाफ अपराध और नरसंहार जैसे मामलों में समय सीमा का नियम लागू नहीं होता है। याचिका में यह भी कहा गया कि माननीय अदालत ने यह मानने मैं भी विफल रहा कि 1989 और 1998 के बीच बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों/हिंदुओं की हत्या कर दी गई थी। इससे जुड़े लगभग 200 से अधिक मामलों में एफआईआर दर्ज की गई थी।
लेकिन उनके बारे में आज तक कोई भी चार्जशीट दाखिल नहीं की गई है। या कोई भी मामला किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा है। अब नए सिरे से प्राथमिकी दर्ज करने और फिर से जांच कराने की मांग वाली याचिका को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ जस्टिस संजय किशन कौल और एस अब्दुल नजीर की पीठ ने कहा है कि; इसमें कोई मामला नहीं बनता है। पीठ ने कहा है कि हमने क्यूरेटिव पिटिशन और इससे जुड़े हुए दस्तावेजों को देखा है। हमारी राय में रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा मामले में इस अदालत के फैसले में बताए गए मापदंडों के अनुसार कोई भी मामला नहीं बनता है।
इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीर घाटी में सन 1990 के दशक में हुए हिंदुओं के भीषण नरसंहार की सीबीआई, एनआईए अथवा अदालत द्वारा नियुक्त किसी एजेंसी से जांच करवाने की मांग वाली क्यूरेटिव पिटिशन को भी रद्द कर दिया है।
ऐसे में बड़ा सवाल ये खड़ा होता है की हिंदुओं के हिंदुस्तान में हिंदुओं के दुख दर्द को महसूस करने वाला क्या कोई नहीं है❓❓❓