“Muslim can do 4 marriages, if Hindu does second then jail, discrimination based on religion is not acceptable, HC seeks answer from Center.”
बहुत लंबे समय से उबल रहा ये प्रश्न आखिर पहुंच गया हैं हाईकोर्ट। क्या ये भेदभाव खत्म होगा ?
सनातन 🚩समाचार🌎 कई सालों से यह मुद्दा हिंदुस्तानियों के जनमानस नहीं छाया हुआ था जो आखिरकार अदालत में पहुंच ही गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने मुस्लिम पर्सनल ला आवेदन अधिनियम 1937 को चुनौती देने वाली एक याचिका पर भारत के अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी कर दिया है। बता दें कि इस याचिका में आईपीसी की धारा 494 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
इस मसले पर कोर्ट में हुई एक सुनवाई के दौरान हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड के अधिवक्ता अशोक पांडे ने कहा कि धारा 494 सिख, बौद्ध, ईसाई और हिंदू धर्म के अनुयायियों पर लागू होती है। जिसके चलते यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी के रहते दूसरा विवाह करता है तो उसे स्वीकार नहीं जाएगा और साथ ही इसे अपराध मानते हुए उस व्यक्ति को 7 साल की कैद और जुर्माना का दंड दिया जाएगा। किंतु इसके विपरीत मुसलमानों पर यह कानून लागू नहीं होता।
चर्चा के दौरान हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड के अधिवक्ता अशोक पांडे ने अदालत को बताया कि आईपीसी की धारा 494 मुसलमानों पर इसलिए लागू नहीं होती है क्योंकि उन्हें मुस्लिम पर्सनल ला आवेदन अधिनियम 1947 के अंतर्गत सुरक्षा प्राप्त है। इस शरीयत एप्लीकेशन एक्ट की सहायता से मुसलमान पुरुष चार शादियां कर सकता है अतः इसका अर्थ सीधे तौर पर यह है कि यह धर्म के आधार पर भेदभाव होता है, जो संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। इसलिए 494 धारा को असंवैधानिक करार देकर खत्म कर देना चाहिए।
बता दें कि हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने केंद्र सरकार को 6 हफ्ते में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि मुसलमानों को प्राप्त इस विशेष अधिकार के कारण समाज में बलात्कार जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। पैसे वाले मुसलमान कई शादियां कर लेते हैं जबकि गरीब मुस्लिमों को एक भी शादी नसीब नहीं होती है, जिस कारण समाज में बलात्कार जैसी घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हो रही है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि अधिनियम 1937 महिलाओं को प्राप्त मौलिक और बुनियादी मानवाधिकारों का लिंग के आधार पर हनन करती है। आईपीसी की धारा 494 की वैधता सवाल उठाए जाने पर अदालत ने अटॉर्नी जनरल को भी नोटिस जारी किया है।
कोर्ट ने कहा है कि केंद्र की तरफ से जवाब दाखिल होने के बाद याचिकाकर्ता को भी प्रत्युत्तर देने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया जाएगा। इस मामले में अब 2023 के मई महीने में सुनवाई होने की आशा की जा रही है