“I didn’t ask for dowry believe me I never asked for dowry but still………”
आप सौभाग्य शाली हैं जो आपके साथ ये नही हुआ है परंतु हर इलाके में ये होना आम हो चला है।
ये भी एक सच है
सनातन 🚩समाचार🌎 यह सही है की दहेज प्रथा एक बहुत बुरा अभिशाप है समाज के लिए, और इसे रोकने के लिए बहुत ज्यादा और सख्त कानून भी बने हुए हैं परंतु फिर भी आए दिन समाज में दहेज के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं बेशक दहेज की मांग से लड़कियां ही पीड़ित होती है परंतु तस्वीर का एक दूसरा रुख भी है उसे भी देख लेना चाहिए इस विषय में यहां पर लिखी गई सभी बातें हैं तो काल्पनिक परंतु यह भी सच है कि आज लगभग हर मोहल्ले में हर इलाके में यह सब हो रहा है ………
साहब मैं थाने नहीं आउंगा, अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा, माना पत्नी से थोड़ा मन-मुटाव था, सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था, पर यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
.
मानता हूँ कानून आज पत्नी के साथ है, महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है। चाहत मेरी भी बस ये थी कि माँ बाप का सम्मान हो, उन्हें भी समझे माता पिता, न कभी उनका अपमान हो । पर अब क्या फायदा, जब टूट ही गया हर रिश्ते का धागा, यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
.
परिवार के साथ रहना इसे पसंद नहीं है, कहती यहाँ कोई रस, कोई आनन्द नही है, मुझे ले चलो इस घर से दूर, किसी किराए के आशियाने में, कुछ नहीं रखा माँ बाप पर प्यार बरसाने में, हाँ छोड़ दो, छोड़ दो इस माँ बाप के प्यार को, नहीं माने तो याद रखोगे मेरी मार को।
.
फिर शुरू हुआ वाद विवाद माँ बाप से अलग होने का, शायद समय आ गया था, चैन और सुकून खोने का, एक दिन साफ़ मैंने पत्नी को मना कर दिया, न रहूँगा माँ बाप के बिना ये उसके दिमाग में भर दिया। बस मुझसे लड़कर मेरी पत्नी मायके जा पहुंची।
.
2 दिन बाद ही पत्नी के घर से मुझे धमकी आ पहुंची, माँ बाप से हो जा अलग, नहीं सबक सीखा देंगे, क्या होता है दहेज़ कानून तुझे इसका असर दिखा देगें। परिणाम जानते हुए भी हर धमकी को गले में टांगा, यकींन माँनिये साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
.
जो कहा था पत्नी ने, आखिरकार वो कर दिखाया, झगड़ा किसी और बात पर था, पर उसने दहेज़ का नाटक रचाया। बस पुलिस थाने से एक दिन मुझे फ़ोन आया, क्यों बे, पत्नी से दहेज़ मांगता है, ये कह के मुझे धमकाया।
.
माता पिता भाई बहिन जीजा सभी के रिपोर्ट में नाम थे,
.
घर में सब हैरान, सब परेशान थे,अब अकेले बैठ कर सोचता हूँ, वो क्यों ज़िन्दगी में आई थी ? ?
.
मैंने भी तो उसके प्रति हर ज़िम्मेदारी निभाई थी। आखिरकार पुरस्कार मिला हमें दहेज़ लोभी होने का, कोई फायदा न हुआ मीठे मीठे सपने संजोने का । बुलाने पर थाने आया हूँ, छुपकर कहीं नहीं भागा, लेकिन यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
.
• झूठे दहेज के मुकदमों के कारण, पुरुष के दर्द से ओतप्रोत एक मार्मिक कृति!