प्रसिद्ध व्यक्तित्व पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ ने प्रेस वार्ता में वो बताया जो आपको भी पता होना चाहिए।
सरेष्ठ पत्रकार श्रीमान पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी रविवार को संवाददाताओं से वक्फ प्रोपर्टी एक्ट के बारे में बात कर रहे थे। उन्होंने वक्फ प्रॉपर्टी एक्ट 2013 की चर्चा करते हुए बताया कि इसका एक प्रावधान आर्टिकल 40 बहुत खतरनाक है। यह आर्टिकल बोर्ड को यह अधिकार देता है कि बोर्ड के दो सदस्यों को देश में अगर कहीं भी यह लगे कि कोई संपत्ति पहले वक्फ की थी तो वह उसे अपने कब्जे में ले सकता है। बीते 10 सालों में इस कानून के चलते देश में सरकारी जमीनों को कब्जाने का अभियान चल रहा है।
उद्यान में भी मजार
आंध्रप्रदेश के एक जज के हवाले से उन्होंने कहा कि जज के मुताबिक देश में सबसे ज्यादा जमीन रेलवे के पास है। उसके बाद डिफेंस और फिर वक्फ बोर्ड के पास है जमीन का कब्जा। आए दिन मामले सामने आते हैं, जब अचानक मजारें अस्तित्व में आ रही हैं। दिल्ली के संजय गांधी उद्यान में भी मजार का मामला सामने आया है। उन्होंने कहा कि इस एक्ट के बाद से सरकारी जमीन घेरने का सिलसिला देशभर में चल रहा है। इलाहाबाद में चंद्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कोरोनाकाल में पार्क में मस्जिद, मजार और दूसरे कई निर्माण हो गए। मामला जानकारी में आया तो टीम के एक सदस्य विष्णु शंकर जैन ने हाइकोर्ट में पिटीशन डाली थी। अब हाइकोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब मांगा है। इस मामले में वक्फ बोर्ड का दावा है कि यह जमीन उसकी है।
1.5 % आबादी
उन्होंने अल्पसंख्यक आयोग पर भी सवाल उठाते हुए उसके दुरुपयोग की बात कही है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के साथ ही राज्यों में भी अल्पसंख्यक आयोग बने हैं। अल्पसंख्यकों को दोनों आयोगों से आर्थिक सहायता दी जा रही है। अल्पसंख्यक होने के क्राइटेरिया को लेकर सरकार के पास कोई नीति नहीं है। यह बात सरकार ने एक आरटीआइ में मानी है। इस बारे में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने अल्पसंख्यक की जो परिभाषा तय की है, उसके अनुसार कुल आबादी का 1.5 % आबादी वाले लोगों को ही अल्पसंख्यक माना जा सकता है।
संवैधानिक नहीं है
दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि कश्मीर, पंजाब, लक्ष्यदीप, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड समेत जिन नौ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, उन्हें इसका लाभ नहीं दिया जा रहा। प्लेसिस ऑफ वरशिप एक्ट भी इसी तरह का कानून है। देशभर के 30 हजार मंदिरों से हिंदुओं का दावा इसी बिना पर खारिज कर दिया गया।वर्ष 2005 में बनी सच्चर कमेटी के अस्तित्व पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कमेटी संवैधानिक नहीं है। इस पर महामहिम राष्टपति ने हस्ताक्षर ही नहीं किए हैं, और 2006 से इसके बहाने हजारों करोड़ रुपए मुसलमानों के अपलिफ्टमेंट के नाम पर खर्च हो रहे हैं।
प्रेस वार्ता में उन्होंने आगे कहा कि अंग्रेजों ने वर्ष 1921 में वक्फ बोर्ड का गठन किया था। इसके बाद पहले 1956 में और फिर 1995 में इसमें संशोधन किये गए। वर्ष 2013 में संसद ने वक्फ प्रॉपर्टी एक्ट 2013 को पारित कर दिया था। इसका एक प्रावधान सेक्शन 40 बहुत खतरनाक है। इसके अनुसार बोर्ड के कोई दो लोग चाहें तो देशभर में किसी की भी सम्पत्ति को वक्फ की संपत्ति बता सकते हैं। इसके लिए उन्हें कोई साक्ष्य देने की जरूरत नहीं है। वह दोनों सदस्य जिला मजिस्ट्रेट या किसी भी जिम्मेदार अधिकारी को 24 से 72 घंटे में उसे खाली करवाने का आदेश दे सकते हैं।
ऐसी स्थिति में पूरी सरकारी मशीनरी को उस आदेश पर अमल करवाना ही पड़ेगा। भयानक बात ये है कि हाइकोर्ट में ऐसे मामलों की कोई भी सुनवाई हो ही नहीं सकती। उससे भी बड़ी बात ये की पीड़ित को इसके विरोध में पिटीशन लेकर वक्फ बोर्ड के ही ट्रिब्यूनल में जाना होगा।
An article of the Waqf Property Act (Waqf Board) is very dangerous, this work can be done on anyone’s property.