“Is it the destiny of a Hindu to become a bull? Taming a bull is a very difficult task.”
सनातन धर्म में पूजित गाय को जो बछड़ा होता है वही बड़ा होने पर सांड (Bull) बनता है। और…. सांड को अपनी शक्ति का अंदाजा भली प्रकार होता है….!
सनातन🚩समाचार🌎 वैसे तो…. आमतौर पर सांड शांत होता है लेकिन चिढ़ने पर वो बहुत भयंकर हो जाता है.
क्योंकि…. सांड आसानी से किसी के भी वश में नहीं आता है और यही कारण है कि…. सांड को कभी भी हल या गाड़ी में नहीं जोता जाता है.
यहाँ तक कि … सांड को काटना भी आसान नहीं होता …
क्योंकि, वो इसका बहुत ही हिंसक प्रतिकार करता है.
लेकिन…. जब उसे बधिया कर “बैल” (bullock_Ox) बनाया जाता है तो … इसके बाद वो नपुंसक हो जाता है.
इसके पश्चात उसमें ताकत तो रहती है …लेकिन, वो आसानी से किसिवके भी वश में आ जाता है .
और, इसी कारण से तब वो….
खेत में हल जोतने, गाड़ी से माल ढोने और कोल्हू से तेल निकालने जैसे कई काम करने लगता है.
“”कोल्हू का बैल”” तो आपने बहुत सुना होगा….
लेकिन, “”कोल्हू का सांड”” सुना है कभी ????
और….. एक समाज को “”सांड को बधिया कर बैल”” बनाने का सब से सही तरीका है…. कि, उसको डिमोरलाइज (हतोउत्साहित) करते रहो.
और तरह तरह सेवउसका आत्मविश्वास छीन लो…
ताकि, वो आपके किसी कथन का प्रतिकार ही न कर सके.
और, इस तरह से…. उस की सहनशीलता को ही आप उसका मापदंड बनाओ तथा उसे अपनी मर्जी के अनुसार समय समय पर बदलते भी रहो.
उसे बदनामी या फिर डिमोरलाइजेशन की इतनी मार मारो कि…. वो आप को देखते ही वो गर्दन झुकाकर आपका “दिया गया संकेत” स्वीकार करना चालू कर दे.
ध्यान दें की सांड को बैल वही बनाते हैं जो उसकी मेहनत की खाते हैं…
और, अंत में उसे काटकर BEEF PARTY भी करते हैं.
क्या आपको नहीं लगता है कि…. आज बहुत ही चालाकी से … सोशल मीडिया पर हमारे हिन्दू समाज को “सांड से बैल बनाने की प्रक्रिया” बहुत तेजी से चलाई जा रही है ???
हिंदू को पहले हल्के से ये समझाया जाता है कि आपके आराध्य तो काल्पनिक हैं, बेकार हैं और मन की उपज हैं.
इसके बाद उसे उल-जलूल तर्कों से प्रमाणित करने का प्रयास किया जाता है। ईश्वर /भगवान का कोई अस्तित्व ही नहीं है जिसे आप पूजते हो.
अर्थात, सीधे-सीधे नहीं बल्कि घुमा फिरा कर आपसे लगातार ये कहा जा रहा है कि आपके पूजा-पाठ , धार्मिक ग्रंथ, धार्मिक मान्यताएँ, पर्व-त्योहार आदि सब बेकार की बातें हैं..
क्योंकि, जब ईश्वर है ही नहीं तो फिर ईश्वर की पूजा, उनके प्रति आस्था और उससे संबंधित ग्रंथ एवं पर्व-त्योहार स्वयं ही निर्रथक हो जाते हैं..और हिंदुओं को ये सब बताने में बड़ा हाथ न्यूज चैनलों का और बॉलीवुड का भी रहता है।
तदुपरांत… अगले कदम में आपकी मान्यताओं यथा ज्योतिषविज्ञान, खगोल विज्ञान, ज्योतिषशास्त्र आदि को बेकार के ग्रंथ साबित करने का प्रयास होता है और साथ ही आपके दिमाग में आपके संतों के प्रति भी जहर घोला जाता है।
और, अंततः आपको बैल बनाकर आप पर नास्तिकता का सेकुलरपने का रोग दे दिया जाता है.
और, ये कोई पहला प्रसंग नहीं है कि ऐसा करने का प्रयास किया जा रहा हो..
बल्कि, पहले भी विभिन्न युगों में ऐसे कुत्सित प्रयास किये जा चुके हैं.
सतयुग में हिरणकश्यपु और त्रेता में रावण को भी ऐसा ही लगने लगा था कि दुनिया में भगवान है ही नहीं है और दुनिया में जो है सो वही है.
इसी भावना से वशीभूत होकर उन्होंने देवताओं के पूजा-पाठ एवं यज्ञ आदि बंद करवा कर खुद को ही सर्वज्ञाता/सर्वशक्तिशाली/भगवान घोषित कर दिया था.
जिसका परिणाम क्या हुआ… हम सब जानते हैं.
लेकिन, अभी न तो सतयुग है और ही त्रेता….
इसीलिए, इस युग में यदि आपको नास्तिक/सेक्यूलर बनकर कोल्हू का जुवा नहीं ढोना है….
अथवा, खेत के हल में नहीं जुतना है तो…..
अपने धर्मशास्त्रों को पढ़िए, जानिए और ज्ञान रूपी त्रिशूल को अपने हाथ मेंउठाकर चलिये और महादेव बनिए…!
क्योंकि जब बैल बनते रहोगे तब तक जोते ही जाओगे…
क्योंकि.. बैलों की नियति जुतना ही है.
उठो सनातनियों उठो, अपनी शक्ति को पहचानो।