“Hindus won the Lakshagriha of Mahabharata not by separating the head from the body but by fighting the case in the court.”
मुस्लिम कह रहें थे ये कब्रिस्तान और दरगाह है किंतु कोर्ट ने नकार दिया।
सनातन🚩समाचार🌎 जिस तरह वायु के बिना जीवन असंभव है ठीक उसी प्रकार लाक्षागृह के बिना महाभारत की कल्पना भी असंभव है। हिंदू शास्त्रों में वर्णित उसी लाक्षागृह पर मुस्लिम समाज के द्वारा कब्जा किया हुआ था जिसे अब अदालत ने खारिज कर दिया है।
बतादें की महाभारत में वर्णित लाक्षागृह उत्तर प्रदेश के बागपत में स्थित है। महाभारत के अनुसार इस लाक्षागृह को दुर्योधन ने पाण्डवों को जला कर मारने के लिए बनवाया था। उसी लाक्षागृह को अपनी मलकियत जताते हुए मुस्लिम लोग दावा कर रहे थे कि ये सारी जमीन उनकी है। मुस्लिम समाज के द्वारा ये भी कहा जा रहा था की यहां पर बदरुद्दीन की मजार बनी हुई है। किंतु अदालत ने मुस्लिम पक्ष को झटका देते हुए सारी जमीन हिंदुओं के हवाले कर दी है।
मुस्लिम पक्ष का कहना था कि वहां बदरुद्दीन की मजार के आसपास मुस्लिमों का कब्रिस्तान भी है। किंतु हिंदू पक्ष के अधिवक्ता रणवीर सिंह के अनुसार मुस्लिम लोग 100 बीघा भूमि को कब्रिस्तान और मजार बताकर उस पर अवैध कब्जा करना चाह रहा था। उन्होंने अदालत में वो सारे प्रमाण रखे जिनसे सिद्ध हो गया की ये भूमि लाक्षागृह की ही है। उन्होंने अदालत को बताया कि इस स्थान (लाक्षागृह) का विवरण हिंदुओं के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत में भी है।
इस टीले पर संस्कृत विद्यालय और महाभारत कालीन प्रमाण भी मौजूद हैं। उनका दावा है कि ये जमीन मुस्लिम वक्फ बोर्ड की है। ये मामला पिछले 53 साल तक कोर्ट में चला। अब इस मामले में फैसला आ गया है। कोर्ट ने माना कि यह लाक्षागृह ही है, मजार नहीं। कोर्ट ने 100 बीघे की पूरी जमीन और मजार को हिंदुओं को सौंपने का आदेश दिया है। वर्ष 1970 में उत्तर प्रदेश वक्फ बोर्ड ने इस भूमि पर अपना दावा ठोक दिया था।
तब वक्फ बोर्ड के मुकीम खान ने लाक्षागृह टीले को बदरुद्दीन की मजार और आसपास की जमीन को कब्रिस्तान बताते हुए इस पर मालिकाना हक जताते हुए एक मुकदमा दायर कर दिया था। इस मामले में मुकीम खान ने ब्रह्मचारी कृष्णदत्त को प्रतिवादी बनाया था। तब मुकीम खान ने कहा था कि ये जमीन वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड में है, जिसमें शेख बदरुद्दीन की मजार और एक बड़ा कब्रिस्तान मौजूद है। उधर हिंदू पक्ष की तरफ से यह कहा जा रहा था कि ये महाभारत में वर्णित लाक्षागृह है।
यहाँ महाभारत कालीन सुरंग है, पौराणिक दीवारे हैं और प्राचीन टीला मौजूद है। पुरातत्व विभाग यहाँ से महत्वपूर्ण पुरावशेष भी प्राप्त कर चुका है। दरअसल वर्ष 1953 में हुई खुदाई के दौरान यहाँ पर लगभग 4500 साल पुराने पुरातात्विक महत्व के सामान मिले थे। लाक्षागृह में आग लगनेबके बाद पांडव जिस सुरंग से बाहर निकले थे वो सुरंग आज भी बरनावा में मौजूद है। यहाँ ASI दिल्ली द्वारा सन 2018 में ट्रेंच लगाकर टीले का उत्खनन किया जा चुका है।
तब यहां राजपूत काल की पॉटरी और साक्ष्य भी मिले थे। बागपत के बरनावा में लाक्षागृह टीले की पहचान हुई है। इस भूमि के विवाद का केस बागपत के एडीजे की कोर्ट में चल रहा था। अब जबकि इस मामले में कोर्ट का फैसला आ गया है, किंतु कोर्ट में अपनी हार देखने के लिए अब इस दुनिया मे मुकीम खान नहीं है और न ही अपनी जीत पर खुशियां मनाने के लिए ब्रह्मचारी कृष्णदत्त जी जिंदा हैं।