सनातन धर्म का प्रत्येक संस्कार में कोई ना कोई वैज्ञानिकता छिपी हुई है।
हिन्दू धर्म में स्वास्थ्य और सम्मानित जीवन जीने के अनेकों संस्कार हमारे महान पुरुषों के द्वारा तय किए गए हैं। ये ऐसे संस्कार हैं जिनका आज के आधुनिक वैज्ञानिक भी लोहा मान रहे हैं। यह संस्कार सिद्ध करते हैं कि हिंदुओं के पुरखे, ऋषि मुनि कितने विद्वान थे। तो आज जानते हैं सनातन के एक संस्कार – नाक और कान छेदने के बारे में।
जानते हैं इसके पीछे छिपे वैज्ञानिक कारण ;
बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार विधि विधान से सम्पूर्ण किए जाते हैं। शास्त्रों में वर्णित संस्कारों में नौवें संस्कार के अनुसार बच्चे का कर्णवेध संस्कार किया जाता है। जिसके अनुसार बच्चे की श्रावण शक्ति में बढ़ोत्तरी और उसके स्वास्थ्य रक्षा के लिए नाक कान छेदने की परंपरा है। जहां पूर्ण स्त्रीत्व की प्राप्ति के लिए कन्याओं का नाक कान छेदन किया जाता है तो वहीं पुरुषत्व की प्राप्ति के लिए लड़कों का भी नाक कान छेदन किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नाक कान छेदने से बच्चा स्वस्थ, निरोगी बनता है और बच्चे की कुंडली में मौजूद राहु और केतु का प्रभाव कम होता है। इस दौरान चांदी, सोने या लोहे से बनी सुई से नाक कान छेदन की प्रक्रिया संपन्न की जाती है। आधुनिक समय में पुरुष एक कान और महिलाएं दोनों कान और बाई तरफ की नाक छिदवाती हैं। जिसके पीछे कई सारे वैज्ञानिक कारण उपस्थित हैं।
नाक कान छेदन के पीछे वैज्ञानिक महत्व।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो नाक और कान छेदन से व्यक्ति की स्मरण शक्ति तेज होती है। साथ ही इससे बोली में भी परिवर्तन आता है और कानों से होकर मस्तिष्क तक रक्त संचार भी शीघ्रता से होता है। पुरुषों द्वारा कान छेदन से वह बहुत सारी बीमारियों से बच जाते हैं, और नाक कान छेदन से स्त्री की सुंदरता में भी बढ़ोत्तरी होती है।
कान छेदन से आंखों की रोशनी तेज होती है और मानसिक तनाव का स्तर भी कम होता है। नाक छेदन से महिलाओं को मासिक धर्म के समय असहनीय दर्द से मुक्ति मिलती है। साथ ही नाक कान छेदन से महिलाओं को उच्च रक्तचाप की समस्या नहीं होती है और प्रसव के दौरान होने वाली परेशानी को भी कम किया जा सकता है।
प्राचीन गुरुकुल शिक्षा के दौरान विद्यार्थियों के नाक कान छेदनकी व्यवस्था थी। जिससे उनकी मेधा शक्ति को निखारा जाता था। दूसरी तरफ नाक कान छेदन से व्यक्ति का वजन भी नियंत्रित रहता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। नाक कान छेदन से श्वसन तंत्र मजबूत रहता है और व्यक्ति दीर्घायु प्राप्त करता है।
हालांकि वर्तमान समय में नाक कान छेदन परम्परा का प्रचलन कम हो गया है लेकिन इसे पीछे मौजूद वैज्ञानिक कारणों के चलते ये स्वास्थ्य सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत लाभप्रद है। परंतु इसके साथ चल यह भी दुर्भाग्य ही है कि वर्तमान में तथाकथित आधुनिकता के चलते हिंदू अपने पुरातन और श्रेष्ठ संस्कारों को भुलाते जा रहे हैं हालांकि आधुनिक वैज्ञानिक उन सभी सनातनी संस्कारों को अब मान्यता दे रहे हैं।