🚩सनातन धर्म के आधार गुरुकुल, जिनके आगे कभी सत्ताएं शीश झुकती थीं जो सदैव राष्ट्र के कल्याण को ततपर रहते थे और जो समाज से भोले भाले बच्चों को लेकर उन्हें तराश कर युवा होने पर समाज को योद्धा के रूप में, महाज्ञानी के रूप में अथवा कुशल व्यपारी के रूप में समाज को लौटा देते थे। उस महान गुरुकुल परम्परा को एक बड़े षड्यन्त्र के चलते खत्म कर दिया गया है ताकि हिन्दुस्थान की सनातन परम्परा को पूरी तरह खत्म किया जा सके।
“गुरुकुल” जिनके आगे “सत्ताएं” झुकती थी।
कभी “सम्राटों” से लेकर “नागरिकों” तक पूरे समाज और शासन के लिए न्याय , नीति और धर्म की परिभाषा “गुरुकुल” ही निर्धारित किया करते थे। जहाँ नागरिकों से लेकर के सम्राटों के पुत्र युवराज आदि बिना जातिगत भेदभाव के एक साथ पढ़ा करते थे, एक साथ खाते थे एक साथ यज्ञ करते थे। जिनके आदेश समस्त सत्ताओं के लिए अंतिम आदेश होते थे उन गुरुकुलों के प्रति लोगों की,समाज की धारणाएं “दुष्ट मैकाले” की शिक्षा पद्यति के चलते कितनी बदल चुकी हैं :—
आज समाज में सामान्य अवधारणा है कि –
गुरुकुल में पढ़ाना अर्थात अपने बच्चे को “भिखारी” बनाना।
गुरुकुल में पढ़ाना अर्थात अपने बच्चे को “रुढ़िवादी” बनाना। गुरुकुल में पढ़ाना अर्थात अपने बच्चे को “पंडा ,पुरोहित, पुजारी” बनाना।
गुरुकुल में पढ़ाना अर्थात अपने बच्चे को “कर्मकांडी” बनाना।
गुरुकुल में पढ़ाना अर्थात अपने बच्चे को “कुए का मेढक” बनाना।
गुरुकुल में पढ़ाना अर्थात अपने बच्चे को “पराश्रित” बनाना।
गुरुकुल में पढ़ाना अर्थात अपने बच्चे को “नौकरी के अयोग्य” बनाना।
गुरुकुल में पढ़ाना अर्थात अपने बच्चे को “business के अयोग्य” बनाना।
गुरुकुल में पढ़ाना अर्थात अपने बच्चे को “technology” से दूर करना।
गुरुकुल में पढ़ाना अर्थात अपने बच्चे को “modern language” से दूर करना।
गुरुकुल में पढ़ाना अर्थात अपने बच्चे को “गणित,विज्ञान” से अशिक्षित रखना।
गुरुकुल में पढ़ाना अर्थात अपने बच्चे को “अपने उपर भार” बनाना।
और सबसे खतरनाक: गुरुकुल में पढ़ाना अर्थात अपने बच्चे को “मजाक का पात्र” बनाना।
कॉन्वेंटी कल्चर के कुप्रभाव से यह विकृत अवधारणा उन गुरुकुलों के प्रति हैं जिन्होंने ज्ञान, विज्ञान,अध्यात्म ,तकनीक, गणित, समाज शास्त्र, शिक्षा शास्त्र , योग शास्त्र आयुर्वेद आदि आदि का विकास कर मानवता का कल्याण किया और गुरुकुलों का गौरव संपूर्ण भूमंडल पर स्थापित किया।
ये अवधारणायें उन गुरुकुलों के प्रति हैं, जिन गुरुकुलों से कभी विश्व का हर बुद्धिजीवी जुड़ना चाहता था, और गुरुकुलों में अध्ययन की अभिलाषा लेकर वह हजारों हजारों किलोमीटर दूर से भारत की धरती पर विचरण करता हुआ आता था। परंतु यह उस काल की बात है जब गुरुकुल शिक्षा पद्धति अपनी पूर्ण वैभव और उत्कर्ष पर थी जिसकी बदौलत ही भारत सोने की चिड़िया, ज्ञान-विज्ञानअध्यात्म की खान और वैभवशाली हुआ करता था।
ये बहुत पीड़ादायीं है कि ये धारणाएं उन्हीं गुरुकुलों के प्रति हैं जिनमे कभी सनातन संस्कृति के सूर्य श्रीराम ,श्रीकृष्ण का अध्ययन हुआ, जिनमें कभी राजनीतिज्ञअर्थशास्त्री “आचार्य चाणक्य” जैसे राष्ट्र निर्माता का निर्माण हुआ ,जिनमें कभी आधुनिक गणितविज्ञान के पितामह “आचार्य आर्यभट” जैसी मानतम विभूतियों का निर्माण हुआ।
वर्तमान में ……
उत्तर भारत वेदपाठियों से कई दशक पहले ही लगभग विहीन हो चुका है। आज हिंदु लगभग पूर्णतः वेद विद्या से कट चुका है ,वेद से उसका सम्बन्ध ही नहीं रहा है, आज हिन्दू अपने बच्चों को सब कुछ बनाने के लिए तैयार है वो बच्चों को इंजिनीयर,डाक्टर ,वकील और मल्टीनेशनल कंपनी में नोकर बनाने को तो तैयार है परन्तु वेद का विद्वान् बनाने के लिए तैयार नहीं है।
आज चर्चा इस विषय पर होनी चहिए कि, कैसे वेद विद्या को बचाया जाए ? किस तरह गुरुकुलीय परम्परा को पुनः जीवित किया जाए ? कैसे पुनः सनातन संस्कृति की वैज्ञानिक दृष्टिकोण और दर्शन युक्त “शिक्षा” और “समाज” का पुनः सृजन किया जाये ? बड़ी बात यह है कि मानव कल्याण के लिए हमारे आचार्यों, ऋषियों मुनियों ने जिस कामना को लेकर गुरुकुल परंपरा चालू की थी उन सब का हमने तो त्याग कर दिया है परंतु अरब तथा पश्चिम के लोगों ने इसका भरपूर लाभ उठा लिया है।
बहर हाल अब आवश्यकता इस बात की है कि जितनी जल्दी हो सके हम सनातनी पुनः अपने मूल की ओर लौटें और जो हमारे महान पुरुषों ने हमें संस्कार दिए थे उन्हें अपनाएं और कुछ भी करके पुनः अपने प्यारे हिन्दुस्थान में गुरुकुल परंपराएं चालू कर दें ताकि हम फिर से अध्यात्म ज्ञान और विज्ञान के चरम पर पहुंच सकें।